शनिवार, 31 दिसंबर 2011

कुछ ख़ास रहा

नए साल से पहले कुछ यादो की सौगात लेकर आया हूँ कुछ पंक्तिया इधर उधर से उठाकर अपनी ही कुछ बाते बता रही है उन्ही पंक्तियो को सबके साथ बाटने की कोशिश है क्यूंकि मुझे ये बहुत पसंद आई है सारी पंक्तिया मित्रो द्वारा ही लिखी गयी है मित्रो के लिए........नए वर्ष के स्वागत एवं बीते हुए हसीं  पलो के सम्मान में ....................
तो सीधे ............



११:२१
२९/१२/२०११

अक्सर  हम  लम्हों  को  ख़ास  बनाने  की  चाह  मे, लम्हों  की  अहमियत  हे  खो  देते  है...
और  उन  बीते  लम्हों  की  कीमत  का  एहसास  हमे  तब  होता  है  जब, हम  यादो  के  झरोखे  से  मुड़कर  देखते   है ..........................

कुछ  ख़ास  होगा  वो  पल, कुछ  ख़ास  होगा  आने  वाला  कल ...

इसी  चाह  मे  आज  भी  वक़्त  गुजर  गया...


अब  जब  मुड़कर  देखता  हूँ   कल  को, तो  होता  है  एहसास  यह  की ....
ख़ास  तो  हर  लम्हा  था ... हर  इक  पल  था ...

वो  धूप  ख़ास  थी ... वो  छाँव  ख़ास  थी ...
वो  बदली  ख़ास  थी ... वो  बारिश  ख़ास  थी ...
वो  फूल  ख़ास  थे ... वो  कांटे  ख़ास  थे ...
वो  बसंत  खास  था  ... वो  पतझड़   ख़ास  थी ...
वो  नदी  ख़ास  थी ... वो  किनारा  ख़ास  था ...
वो  रास्ता  ख़ास  था ... वो  मंजिल  ख़ास  थी ...

वो  यारो  की  हंसी  ख़ास  थी ... वो  यारो  की  कमी  ख़ास  थी ...
वो  आँखों  मे  चमक  ख़ास  थी ... वो  आँखों   की  नमी   ख़ास  थी ...

वो  कालेज  के  लिए  निकलना  ख़ास  था ... वो  कालेज   से  निकलना  ख़ास  था ...
वो  कैंटीन  का  खाना   ख़ास  था ... भले  ही   वो  बड़ा   बकवास  था ...

वो  मिल  के  सुल्गानी  इक  दूसरे  की ...और  फिर  उसपर  हवा  लगाना  ख़ास  था ...
वो  रोना   किसी  का  ख़ास  था ... वो  मनाना  किसी  का  ख़ास  था ..

वो  किसी  पर  आया  "crush"  ख़ास  था ... वो  किसी  का  "crush" होना  ख़ास  था ...
वो  किसी  को  चाहना   ख़ास  था ... किसी  की  चाहत  होना  ख़ास  था ....

वो  सपनो  को  देखना  ख़ास  था ... वो  उनमे  खो  जाना  ख़ास  था ...
वो  दिल  को  सताना  ख़ास  था ... वो  दिल  को  मनाना  ख़ास  था ...

कैसा भी  था  कोई  भी  पल ... उसमे  अपना  कुछ  ख़ास  था ...
लिखते  वक़्त  इन  पंक्तियों  को ... इन  लम्हों  का  एहसास  ख़ास  था ....

न  मैं  ख़ास  था ... न  तू   ख़ास  था ...
पर  न  जाने  क्या-क्या  ख़ास  था ....
न  वो  वक़्त  ख़ास  था ... न  वो  आलम  ख़ास  था ...
बस्स्स ... गुजरे  हुए  इन  लम्हों   मे  मौजूद  "इक  एहसास " था ....
और  शायद.... वही  "ख़ास" था .... वही  "ख़ास" था .........................अखिलेश की कलम से 






१२ :४७ अपराहन

३०/१२/२०११

"पल" पल  के  "किस्से" उन  पलो  में  बन  गए ....
थोड़ी  "बातें" जिनके  अब  "किस्से" बन  गए ...
जाने  कहा   कब   ये   "सफ़र"    शुरू   हुआ ...
"अजनबी" एक  शहर  में  ख़ास  एक  "एहसास" हुआ ..
भवर  में  जिसकी  न जाने  क्या-क्या  "ख़ास" हुआ.
मुड़कर  देखा  तो  "यादों" की  सुनहरी  धूप  बन  गयी ..
जिसमे  "खेलते" थे  कल  तक  आज  एक  "याद"  बन  गयी ...
"ख़ुशी" की  वो  अनमोल  कीमत..
"आंसुओ" का  भी   जो  मोल  नहीं...
कहने  को  "दो  पल" का  वो  साथ ..
न  जाने  कब  उनमे  "ज़िन्दगी" बन  गयी.......मेघा के  मन से 




१२:५१ अपराहन
३०/१२/२०११

कुछ  ख़ास  रहा ... कुछ  बकवास  रहा

कभी  पराया  सा  तो  कभी  अपनेपन  का  एहसास  रहा ...

ख़ुशी  से  बिछुड़ा   यहीं ....यहीं  उसके  पास  रहा .....

जा  रहा   है  देखो  वो  छोड़कर 

जिसका  खूबसूरत  इतिहास  रहा .......

हर  चिक-चिक  ज्हिक-ज्हिक  में  जिसके  जीने  का  प्रयास  रहा .....

बीते  लम्हों  की  ओट  में  कुछ  हास रहा  परिहास   रहा ....

ये  जो  पल   बीता  ..."कल"....

कुछ  ख़ास  रहा ... कुछ  बकवास  रहा......



सबको नया वर्ष मुबारक हो ......आशा और उम्मीद के साथ की आप सबका हर पल ख़ास हो ..............









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गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

तलाश है जारी

एक साथी अदद की तलाश है जारी,
जो  सुने  मुझे,
अपनी  भी  कहता  जाये,
संग  चले  मेरे  वो,
मेरे  ही भावों में  बहता  जाये,
सवाल  करे  न  समझदारी  के,
जवाब  मेरे  समझ  जाये,
मैं  धुन  में  जिसकी  रहू  मग्न,
दिल  दुविधा   से   बच  जाये ,
किस्से  कहानिया बुने  हम  हजार,
कोई  न  उनको  समझ  पाए,
खुशिया समेटे   एक दूजे   में ,
तन्हाई  में  भी  हो  हिस्सेदारी,
एक  साथी  अदद  की  तलाश  है  जारी....


शनिवार, 17 दिसंबर 2011

singing a song of love. .

गुनगुनाती  है  खुशिया,
गाने  लगा  मेरा  मन
तेरे-मेरे  बीच  ये  जो  है  कुछ  सुनहरे  पल,
पास आते दूर  जाते 
दोस्ती  के 
किस्से  सुनाते,
रूठ  जाना  तेरा - मुस्कुराना  मेरा
ख्वाहिशे  मेरी-उम्मीदें  तेरी
गुनगुनाती  है  खुशिया,
गाने  लगा  मेरा  मन
आजाद  सी  ज़िन्दगी,
जी  है  मैंने  तेरे  संग
Life. . . 
Singing a song of love.
N Every moment  is melting without you.
Come along
Sing that song
Make me feel better.
गुनगुनाती  है  खुशिया,
गाने  लगा  मेरा  मन
......हसीं  थी . . .खुबसूरत  हो  गयी,
तेरे  मेरे  बीच  की  ये  दुनिया..... 
Life. . .
singing a song of love. . .

सोमवार, 5 दिसंबर 2011

पता नहीं



दूर   हूँ  पता  है . .

"पास"  का  पता  नहीं

अजनबी  हूँ  पता  है . .

"ख़ास" का  पता  नहीं . .

रिश्ता  है  अनूठा   पता  है . . .

"एहसास" वो  पता  नहीं . . . .

भरोसा  है  तुम पर . .पता  है

"विश्वास" खुद  पर ..पता  नहीं

रास्ता  मालूम  है   बस . . . .

"मंजिल"  का . . . . .पता  नहीं . .

:

अब  बातें  नहीं  होती . . . . . सन्नाटा  सा  है . .
गहरा. . .
शायद  बात  करने  को  कुछ  बचा  नहीं . . . .
या  फिर  बातो  से अब  कुछ  होता  नहीं. .
एक  विराम   सा  है . .
"अमित" . . . असीम . . . .
खाली  होता  हूँ  तो  तुमको  सोचता  हूँ. . . . .
और  जब  तुमको  सोचु  तो  खाली  सा  हो  जाता  हूँ . . . . . .
"शून्य" के  करीब  एक  मोहपाश  पाता हूँ . . . . . .
(:




रविवार, 27 नवंबर 2011

“पंछी” वो एक


27-11-२०११ 5:30 pm
द्वारा  मेघा सूरी जी 

“पंछी” वो  एक
उड़ता  नील  गगन  में
“ख़ुशी” समेट संग अपने  अनेक
छूता  नित  नयी  ऊँचाइया 
लेकर  “शून्यता” की  गहराइया
“भाव” पनपते  देख  मन  में
सिमट  लेता  अपने  पंखो  में
छाया  में  भी  डूबती  किरने  संजोता
अँधेरे  में  उनसे  मुस्कान   बिखेरता
झील  की  सुन्दरता  देख  विस्मय  हो जाता
आँखों  में  उसे   अपनी  बसा लेता 
“दूर” से  हसीं  दुनिया  के  रंग  में
हर  दिन   नए  रंग  वो  भरता
पास  जिन्हें  देख  अपने
वो  न जाने  क्यूँ   विचलित  हो जाता ..
चाहे  हो  सूरज  की  भीषण   गर्मी 
या  “शीत” लहर  का  कहर …
हर  आते  जाते  मौसम  में  वो
बस  "निश्चल-स्नेह"  बरसता …
कोमल  उसका   अन्तहकरन  
“निर्मल” जल   के  भांति..
सब  “रूप” में  सवर  जाता ..
निर्भाव  जो  खुद  को  बतलाता …
ले  आँचल   में  “प्रेम  का  संसार”
अनंत  की  उधान   उड़ता   जाता …
फिर  न  जाने  क्यूँ 
देख  अपनी  तस्वीर  उस  मन  में 
वो  ऐसे   डर जाता  …??







मंगलवार, 15 नवंबर 2011

सीधी बातो से कतराते हो ..



आज भी सीधी बातो से कतराते हो


पता है सब ठीक होगा

फिर क्यूँ घबराते हो

बहाने बना कर

पास जाते हो ....

हँसी-ख़ुशी में चंद लफ्ज बडबडाते हो

न जाने क्यूँ सच से मुह छिपाते हो

"आवर्त"

आज भी सीधी बातो से कतराते हो

कविताये रचते

2 पंक्तियों में न जाने क्या कहना चाहते हो

कोसते हो दुनिया को कभी

तो कभी रिश्तो से डगमगाते हो

दिल की धडकनों को महसूस करो

क्यूँ तुम मुस्कान को ही अपनी

-मुस्कुरा के छुपा जाते हो ...

आज भी सीधी बातो से कतराते हो ..

आधी-अधूरी अनकही बाते ही होती है अक्सर

वार्तालाप को छोडकर तुम जाने कहा खो जाते हो

दिल मेरा नहीं दुखता,

पर महसूस तेरा दर्द तेरे "विराम" से होता है

जो तुम खालीपन सा दे जाते हो ................

आज भी सीधी बातो से कतराते हो ..

क्रमश:




मंगलवार, 1 नवंबर 2011

गम तो आता जाता रहता है

गम  अपने  दिल  का  जब  कोई  बाँट  लेता  है...
उसके  रोने   पे  रोना   भी  आता......
पर  अपना  ही  गम  बड़ा  लगता  है
दिल  से  झेला  नहीं  जाता ............
क्यूँ  न  फिर  तू  दिल  को  समझाता ...
समझोते   सिर्फ  तेरी  किस्मत  में   नहीं ......
सबकी  हाथो  की  लकीर  पे  लिखे  है .....
गम  को  छुपा  सिर्फ  तू  ही  नहीं  मुस्काता  है ..
वक़्त  की  अंगड़ाई  से  रोना  सबको  आता  है ...
कुछ  करते  है  नुमाइश  उनकी ..
और  कुछ  से  मुस्कुराये  बगैर  रहा  नहीं  जाता है .......
सो  तू  भी  मुस्कुरा  आंसू  सिर्फ  ख़ुशी  के  ला
गम  तो  आता  जाता  रहता  है .....गम  तो  आता  जाता  रहता  है

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

कुछ इस तरह हो दिवाली इस बार की,

कुछ इस तरह हो दिवाली इस बार की,
अपने और दिल के करीब आ जाएँ.
सब पुराने शिकवे-गिले भूल जाएँ,
रोशन हो चेहरा "ख़ुशी" से ,
अँधेरा भटकाव का मिटायें.
दीप बाहर ही न जलाए,
प्रेम-दीपक मन में प्रकाशित हो,
हर कोने में रौशनी जगमगाए
रिश्तो की मिठास हो मिठाई से मीठी,
सब के चेहरों पे मुस्कान खिलाये
कुछ रौनक ऐसी हो इस "त्यौहार" की,
"खुशिया" बनी रहे "घर-परिवार" की
कुछ इस तरह हो दिवाली इस बार की ......



सभी मित्रो एवं उनके(मेरे ) परिवार को दिवाली  की हार्दिक शुभकामनाये ..:):):):):):)

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

कश-म-कश



दुआओ   से  एक  ख्वाइश  रंग  लायी  थी  मेरी ..

ख्वाबों  की  परिभाषा  साबित   हो   आयी  थी  मेरी ..

ख़ुशी  और   आंसू  झलक  आये  थे  ऐसे ..

एक  लम्हे  में ज़िन्दगी   उतर  आये  हो  जैसे ..



पर  महज एक  मंज़र  कहाँ  है  ज़िन्दगी,

हजारो  दिन-रात  का  उलट-फेर  है  ये  कहलाती .

कितने  लम्हे  है  जिनका  खुलना  अभी  है  बाकी,

कई एहसासों  में   घुलना  अभी  है  बाकी .



सब   कुछ   पास    है , जैसे  साथ हो  दुनिया  पूरी ,

फिर  भी  जाने   किसे  सुकून  से  हो  एक  दूरी .

भीड़  में  खुद  को  तालाश  लू  में  ऐसे,

मंजिल   का  है  पता  पर  रास्ते  से  अनजान  हूँ  जैसे.



पंछी  सी   आज़ाद  आसमान  में  उड़  जाऊ  कही,

फिर  हवाओ  सी   लहराऊ   तो  सही .

खो   जाऊ  अपनी   ही   धुन  में  इस  तरह,

की  दुनिया-दारी  की  तरंगो  से  न  टकराऊ  कभी.



या  रह  जाऊ  मैं   अपने  ही  जहाँ  में ,

ढालू  खुद  को  फिर  दुनिया  के  रस  में ,

जीत  पाऊ  बस  अपने   ही  आप   से ,

कोशिश  ऐसे  कर  पाऊ  में ...



कहा  खड़ी   हूँ ,कहा   तक  जाना  है ,

क्या   ये  कभी  जान    पाऊँगी    मैं ?

क्या  है  दिल  में , और  क्या  जुबान  पे   है,

क्या  चेहरों   के  मुखौटो को  पहचान   पाऊँगी  मैं ?



शांति  और  सुकून  जैसे  खोया  सा  है ,

तो  क्या  आशा-निराशा   से  फिर  परे  रह  पाऊँगी  मैं ?

लायी  थी  न  कुछ  साथ , न  ले  जाना   है ,





शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

सार लिखूँ



कण कण व्याप्त हृदय में  भ्रष्टाचार  लिखूं ?

निजता  के  सूर्य  से  तपता  कटु-संसार  लिखूं ?
मनु-पुत्र  के  हाथो  ही  प्रकृति  का  संहार   लिखूं ?
हुए  जो  बेघर  बेसहारा  उजड़ता  उनका  परिवार  लिखूं ?
लोभी-क्रूर-क्रोधी  समाज  में  भावनाओ  का  व्यापार  लिखूं ?
विवादों  से  खेलता  मीडिया  उसका   व्यभिचार  लिखूं ?
सफ़ेद  पोश  नेताओ  से  भरे  कारागार  लिखूं  ?
गला  घोटते  भाई-चारे  का,  स्व-हित-हेतु  प्रतिकार लिखूं  ?
बसा  मृदु-मन  में  घनघोर  अन्धकार  लिखूं ?
.............................."आवर्त"..............................................
कुछ  पर   तो   कलम  घिसने  का  भी  अफ़सोस  होता   है .................
सो  पल  दो  पल  में  ढाई  आखर  का  प्यार  लिखूँ..
खुशियों  का  छोटा  सा  संसार  लिखूँ...
तेरी-मेरी   बातो  की  भरमार  लिखूँ.....
बुजुर्ग   हो  गये  अपने   संस्कार  लिखूँ .....
अपनी  ही  जीत  अपनी  ही  हार  लिखूँ........
२-४
पंक्तियो  में  मैं   तो  बस   ज़िन्दगी  का  सार  लिखूँ...........


गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

थोड़ा खुद से थोड़ा मुझसे बतियाना



जब  बातें  हो  जाये  कम,
आँखें  हो  नम,
आस  रखना, 
तब  तुम  मत  घबराना,
थोड़ा  खुद  से  थोड़ा  मुझसे  बतियाना,
चुप्पी  से  अपनी  न  मुझको   तड़पाना,
अपना  समझना  दिल  से  दिल  का  हाल सुनाना,
थोडा  खुद  से  थोड़ा  मुझसे  बतियाना,
जब  कभी   दिन  ढले  आराम  का,
रात  आये, मुश्किल  हो  रास्ता  काटना,
मेरी  बात  याद  रखना, 
दीप  लिए,  रोशन  मैं  रात  कर  दूंगा,
बस  तुम  एक  आस  रखना, 
कभी   न आशा  का  दीपक  बुझाना,
थोड़ा  खुद  से  थोड़ा  मुझसे  बतियाना, 
सन्नाटा  चंद  पलो  का  किसे  नहीं  भाता, 
पर तुम  चुप  हो  तो,
मुझे  भी  बोलना  नहीं आता,
मेरी  बातो  को  दिल से  मत  लगाना,
हो  कुछ  गिला  तो,
थोड़ा  खुद  से  थोड़ा  मुझसे  बतियाना . . . . . . .....

सोमवार, 26 सितंबर 2011

आवर्तिकाए

मेरी और आवर्त की कुछ बातें
जिनमे न छंद है
न ही लय न ताल है
बस जिन्दगी से जुड़े कुछ सवाल है
इन्ही बातो को मैंने नाम दिया है आवर्तिकाए 


>>यूं  न कर परिहास किसी के स्वप्न  का .."आवर्त"
     कुछ  ख्वाइशे  तेरी  भी  अधूरी  है ...........

>>एक ही बात पर बार-बार रोना अच्छा नहीं लगता......."आवर्त"
     तेरी आदत बदल दे एक ही जगह अटकने की ......................

>>"क्यूँ "............................"आवर्त "
     परिस्थितियाँ इंसान  को  इंसान  नहीं  रहने  देती...

>>"आवर्त"...जीना  कुछ  इस  कदर  जिंदगी  की ......
     ज़िन्दगी भी  खुश-कहे तुझसे इसने मुझे जिया  है ...

>>चलते-गिरते-सम्भलते........"आवर्त".....
    ज़िन्दगी  की  दौड़  तो  पूरी  करनी  ही   है .......

>>कोशिश  करता  चल .........."आवर्त"
    ज्यादा  सवाल  न  किया  कर  ज़िन्दगी  से ......

>>ये  शोर  यूँ  ही  नहीं  सुने  देता ..."आवर्त"
    कुछ बात  है  तेरे  सन्नाटे में  भी ...

>>वक़्त  के  आगे  हर  कोई  मजबूर  है ...."आवर्त "
    ये  दौर परेशानियों का  तेरे  साथ   ही  नहीं  चलता....

>>प्रेम-पथ पर चलने से न घबरा ...."आवर्त"
    तेरा हर एक बढता कदम लोगो की उम्मीदें जगाता है .....

>>प्रेम में पड़ने वाला, प्रेम नहीं पढता है .........."आवर्त"..........
     प्रेम को पढने वाला उसमे पड़ने की कोशिश करता है....

>>एक  और  शाम  गुजर  गयी ...."आवर्त"
    आज  फिर  तू  तारे   गिनकर  सो  जाएगा .........

>>तेरा  लिखना  मुझे  मजाक  लगता  है ....."आवर्त"
    जब वो हँसकर  कहती  है  "मुझे  समझ  नहीं  आया"....

>>आज  फिर  तम्मनाओ  के  सागर में  गोता लगाया ......"आवर्त"
     कुछ  मोती  चाहतो  के  और  ढूँढ  लाया ...........

>>ये  दूरियां  ही  तो  हैं  जो  जोड़े  रखती  है ...."आवर्त"
     नजदीकियों   में  कहाँ  आजकल   वो  मिठास  पनपती   है .......

मंगलवार, 20 सितंबर 2011

याद करूँगा


याद करूँगा 
तेरे संग वो ३ रूपए की सवारी 
अपनी मस्त मौला यारी 
तेरे संग बीता हर वो पल 
याद आएगा कल 
जब कोई देर से नहीं आएगा 
डांट कर न मुझे कुछ  सुनाएगा
याद करूँगा 
तेरा ये चंचल स्वाभाव
पल में उसमे निर्मलता का भाव
तेरी वाणी का तेज
और उसमे दोस्ती की छाव
याद करूँगा
तेरे उस दूर देश को
सोच कर तेरे भेस को
हसूंगा इठलाऊंगा 
तेरी यादो में खो जाऊंगा 
याद करूंगा 
तेरा मुस्काना 
पल जब न हो मेरे पक्ष में 
मुझे प्रेरित कर जगाना 
पढ़ कर मेरी कविताये 
तेरा खो जाना 
याद करना तू भी 
एक दोस्त-एक भाई को 
कुछ पलो के इस हमराही को
 ध्यान रखना इतना 
यु तो कोई गम तेरे पे न आएगा
गर हुआ कुछ मुमकिन ऐसा 
तो याद करना हमेशा 
तेरे संग तू हम सबको पाएगी
संग तेरे तू हम सबको पाएगी 
यु तो है किस्से हजार 
हमारे बीच की दोस्ती और प्यार के 
पर अभी सिर्फ इतना ही लिख पाउँगा 
बाकी समेट के अपने दिल में
तुझे कल को अपनी याद दिलाऊंगा 
..............  तुझे कल को अपनी याद दिलाऊंगा ..........
तेरी खुशियों की आशा के साथ तेरा दोस्त तेरा भाई.........अमित :):) keep smiling



शनिवार, 17 सितंबर 2011

सोचा न था

सोचा न था इन्ही रास्तो पर अकेले होंगे हम 
खुशिया होंगी कम 
घेर लेंगे गम 
अकेले होंगे हम
निकल पड़े कल ही तो साथ कारवां लेकर हम
दोस्तों का साथ
मुश्किले थी कम
आज खुद को देख ले अकेले इन राहो पर 
टूटे तेरे सारे भ्रम 
सोचा न था इन्ही रास्तो पर अकेले होंगे हम 
मंजिलें जुदा थी ख्वाइशे हवा थी 
होसलों में जां थी 
प्यार की आड़ में 
मुस्किलो के पहाड़ पे 
दम तोड़ते नजर आएँगे हम 
सोचा न था इन्ही रास्तो पर अकेले होंगे हम ...............
रौशनी बुझी सी,खुशियों की कमी सी,विश्वास था डिगा सा
चौंका मैं सुनके ताल, बढते मेरी ओर थे कुछ कदम
फिर तो क्या बात थी-मुश्किलों की क्या औकात थी
गिर पड़े जमीन पर सारे ही वहम 
सोचा न था इन्ही रास्तो पर अकेले होंगे हम 
हुए भी न कभी इन रास्तो पे अकेले  हम .....कारवां बढता चला, "कुछ रुके"-"कुछ जुड़े" और कुछ चले कदम    


मंगलवार, 23 अगस्त 2011

क्यूंकि हर एक दोस्त जरुरी होता है

 जब दोस्त कुछ बताते नहीं
हम भी उन्हें  सताते नहीं!!

बुलावा है उन्हें 
हर गम हर ख़ुशी में शरीक होने का
बुरा न मानू मैं
अगर वो आते नहीं!!
शुक्रिया कह जाते है 
छोटी छोटी बातों पर भी
लेकिन दर्द तब होता है
जब वो मुस्कुराते नहीं!!

मेरी गलतियो की सजा दे मुझे 
करे बातें हजार
दुःख होता है तब
जब वो समझाते नहीं!!!

हँसते खेलते हर पल में हर दोस्त जरुरी होता है
भले ही वक़्त की फुर्सत में हम बतियाते नहीं!!

सोचता हूँ  हर  लम्हा   तुम्हारी   यादें 
लिखता  हूँ  दिल  पे  अपने  तुम्हारी सारी बातें 
गिला तो ये है की  वो कलम से कागज पर हमेशा  आती  नहीं  !!
KHUS!DOST!AM!T


शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

कुछ और सही.......

हकीकतों के दामन को,
पकडे रखना बच्चो का खेल नहीं,
गर लगता है डर हकीकत से, तो चलो
हकीकत से आगे कुछ और सही......... ।
प्यार निभाना न जान पाए कभी हम,
रिश्तो की भी पहचान हमे नहीं,
अब तो खुद से भी कट कर रहता हूँ मैं,
चलो जिंदगी से आगे कुछ और सही....... ।
निराशा आशा के अंतर्द्वंद में ,
कौन है सही जानना आसान नहीं,
निराशा रात है उस अगली सुबह के लिए ,
गर सुबह न मिले तो चलो शाम ही सही..... ।
पहचानने की चाहत में खुद को,
भूल सकता अपनी चाहत को नहीं,
गर उम्मीदों के काफिले चल चुके काफी आगे,
आओ तय करें रास्ता उनके पीछे ही सही..... ।
ख्वाबों के आँगन में नाचते मन को,
देखकर भी भरता सूनापन मेरा नहीं,
कुछ पलों की बिसात पे बीचा दूं सब कुछ
इस अकेलेपन में यादों का सहारा ही सही.... ।
हुयी जो भी गलतियाँ, जो रहे शिकवे गिले,
उन्हें भुलाकर आगे बढ़ना मुमकिन नहीं,
पर ठीक उन्हें कर आगे ही बढूँगा मैं,
चाहे इस राह पर शूल लाखों ही सही.....
इस बार इन सबसे आगे कुछ और सही..........
कुछ और सही............



आपको एक और भेंट,
संपूर्ण ख़ुशी!!!!!!!!!!!!!

दुनिया......!!!!!

बदलते हुए मौसमो की ये दुनिया
कभी गर्म तो
कभी सर्द होगी,
कभी बादलों से नहाएगी ये धरती,
तो कभी दूर तलक गर्द ही गर्द होगी,
फकत एक तुम ही नहीं हो,
यहाँ जो भी अपनी तरह सोचता है
ज़माने और जिंदगी की रंगत से खफा है।
हर एक जिंदगी नया तजुर्बा है,
दुनिया यही थी,
वही आज भी है,
यही कल भी रहेगी.........
काश......... ।


शुभकामनाओ के साथ,
आपका संपूर्ण ख़ुशी !!!!

आई लव यूं !!!!!!

जब सो जाती है सारी दुनिया
चुपके से आकर चाँद
खड़ा हो जाता है
मेरी खिड़की के सामने
और मुस्कुरा के कहता है
खोज लो मुझमे वो चेहरा
जिसकी तलाश में तुम हो
हवाएं खडखड़ाकर सांकल
पूछती हैं बहुत उदास हो न
अगली बार जब लौटूंगी
सपनो के देश से
जरूर लेकर आउंगी
उसका पता
बादल कहते हैं हम तो
ययाचार हैं
भटकते हैं, देश-विदेश
कभी चलना हमारे साथ
मिलकर ढूँढेंगे उसे
चाँद, सितारे, कोयल
भँवरे सब करते हैं
तुम्हारी ही बातें
मई सुनता हूँ चुपचाप
और सबके चले जाने के बाद
धीरे से बोलता हूँ एक शब्द
मैं जानता हूँ , तुम जहाँ हो,
जहाँ कहीं भी हो,
जरूर सुन लोगी
मेरे ये शब्द,
आई लव यूं !!!!!!


प्रेम सहित आपको समर्पित,


बुधवार, 10 अगस्त 2011

आजकल गलियों में .......

यूं तो मैं  हमेशा उन गलियों से गुजरता था,
अब भी गुजर जाता हूँ कभी कभी ,
पर अब वो एहसास साथ नहीं होता,
जो पहले यादो से होकर वादों में बदलता था।
साइकिलों पे बजाते घंटियाँ हम गुजर जाते थे,
हवा का झोंका बनकर उड़ाते हुए धुल भरे गुबार,

रविवार, 7 अगस्त 2011

Friend-ship

भूल जाऊ कुछ, तो याद दिलाते है
गम का मौसम हो या ख़ुशी की बारिश
हमेशा साथ देने चले आते है
रातो को जागकर जन्मदिन मेरा मानते है
दूर है जो तो क्या हुआ 
मिलते है जिस दिन
उसी दिन सारी जुदाई की कसर निकालते है 
याद मुझे आती नहीं उनकी

शनिवार, 30 जुलाई 2011

रोशन जहां

कुछ  दिन  पहले  की  बात  है ....
बड़े  बड़े  तारो  के  बीच  छोटे  से  सूरज  को  भी
अहमियत  मिलने  लगी ...
हमारा  अपना  सूर्य  और  प्रकाशित  और  उर्जावान  हो  गया...
फिर  धीरे-धीरे
जब  वो  बड़े  तारे  एक  दूर  आकाश-गंगा   के  नन्हे  से  ग्रह  को ...
रोशन  करने  चले  तो...
हमारा  नन्हा  सूर्य  बेचारा   कोई  मदद  नहीं  कर  पाया
जबकि  वो  हर  हाल  में  पूरी  मदद  करना  चाहता   था ...
पर  उन  बड़े  तारो  ने  नहीं  सुना  और  हमारे  प्यारे  नन्हे  सूर्य  को  धोखे-बाज
काम-चोर  और  एहसान-फरामोश   कह  दिया ....
बेचारा  उस  दिन  रोता  रहा ...
उसके  आंसू   घुलते   रहे...
उसकी  उर्जा  कम   होती  रही ..
और  धरती  पे  पहली  बार  रात  हो  गयी ....
फिर
फिर  क्या

बुधवार, 27 जुलाई 2011

क्यूंकि ज़िन्दगी मिलेगी न दोबारा.........

जब मुस्कुराने की "चाहत" न हो
किसी के आने की "आहट" न हो
जिंदगी अकेले में "उकसाने" लगे
सब छोड़कर साथ तुम्हारा जाने लगे
तब एक "आस" तुम रखना

शनिवार, 18 जून 2011

भाव-शून्य

निरर्थकता का प्रतीक हूँ,
सार्थक सत्य को खोज रहा
भावो से घिरकर, प्रयास मैं 
भाव-शून्य होने हेतु कर रहा !

प्रारंभ में ही था चला,
रुदन मेरे अंत का
क्षण भर में सीखा चलना
देख लिया गंतव्य  अपने पंथ का
प्रति क्षण घुलता रहा भाव में किसी
भाव-शून्यता तलाशता अब मैं कही !!

वास्ता किया अपनों से,
कभी किया अजनबी से किसी
किसी की कटुता और मिठास कभी,
भावो  का मायाजाल,
भ्रान्तिया  मेरे मस्तिस्क में बसी
भाव-शून्यता तलाशता अब मैं कही!!!

मित्रता और प्रेम से
भाव-पूर्ण कुशल-क्षेम से
भव्यता भाव की बढती रही
अब न चाहता हूँ भाव कोई 
भाव-शून्यता तलाशता अब मैं कही!!!

हो चुका में भाव-शून्य,
या उस विधाता ने है कोई मंत्रणा (साजिश) रची 
हो चुका मैं पूर्ण विमुख भावो से 
या कही न कही हृदय में एक राइ भाव  की है बची 
भाव-शून्यता तलाशता..........................क्रमश :







शुक्रवार, 17 जून 2011

प्रलय

समुद्र नीर खौलता,
सरू जल उफान पर,
आभास है प्रलय का ये,
या हो रहा सृजन !

बिजलिया है कौंधती,
व्योम घन फट रहे
मूसलाधार बरिशे ,
असमय ऋतु आगमन 
आभास है प्रलय का ये 
या हो रहा सृजन!!

रविवार, 12 जून 2011

सोच  तुझे  देख  कर  ही  मेरी  ख़ुशी
देख  तुझे  सोच  कर  ही  मेरी  हँसी.

जिंदगी  मेरी  जिन्दा  हुई  तुझसे  कहीं
कहीं  तुझ  में  ही   मेरी  जिंदगी  बसी .

पल  पल  जब  शाम  होती  जाये
रौशनी सूरज  की  मेरी  आँखों  से  छिप जाये
बस  एक  तेरी  याद  का  सहारा 
मेरी  आँखों  से  पल  पल  गिरता  जाए.
चमकते  मोती  बिखर  कर  आँखों  से
मेरी  तन्हाइयों को  रोशन  कर  जाए .

बस  तू  न  छिपना  कभी 
रहना  बनकर  मेरे  जेहन  एक  छाव  सी 
सोच  तुझे  देख  कर  ही  मेरी  ख़ुशी
देख  तुझे  सोच  कर  ही  मेरी  हँसी.



शुक्रवार, 10 जून 2011

आवारा पंछी


आवारा पंछी,
फिरता है यहाँ वहाँ,
आवारा पंछी,
कर दे कदमो में सारा जहाँ,
आवारा पंछी
डगमग -डगमग उड़ता रहा.
हवा के संग घुलता रहा .. आवारा पंछी .
होठो पे हर पल है हँसी
गाता ज़िन्दगी जो आँखों में है बसी ..
अआवारा . . .अआवारा पंछी.
क्या सच क्या झूठ संग उसकी ख्वाहिशो का जहाँ...
आवारा पंछी . .फिरता है यहाँ वह.
मिले मंजिल तो खुश है ..न मिले तो .
राह से ही जिन्दगी चली.
खिल जाए गुलाब हँसी का कभी..तो कभी मुस्कान की नन्ही कली.
आवारा पंछी.






पंछी आवारा

गुरुवार, 9 जून 2011

सूखा पत्ता


पत्ता सूखा सा, पड़ा रहा सड़क पर
थोडा पीला,थोडा काला सा
कभी हरा था पेड़ की किसी शाख पर
पत्ता सूखा सा, पड़ा हूँ अब सड़क पर
मौसम जितने आते है
हाँ , हर साल कुछ और
पत्ते सूखे, मेरे साथ शामिल हो जाते है
कुछ सूख़ कर धूप की गर्मी से,
तो कुछ मारे जलन के जल जाते है ...
अकड़ थी मुझ मे भी
जब हवा का झोका, कोई तूफ़ान
हिला न पाता था
लेकिन वक़्त की धार ने सबको कुंद किया है
बचते बचाते एक दिन गिर ही पड़ा
मैं पत्ता सूखा सा , सड़क पर ...............इंतज़ार में एक हवा के झोंके के
जो ले जाये मेरी किस्मत की ओर मुझे
या मेरी मंजिल की तरफ ये उसकी है मर्ज़ी
जो भी उसे सूझे ...........तब तक सूखा पत्ता सा मैं सड़क पर ....क्रमश;






सूखा मैं ....

:)

मंगलवार, 31 मई 2011

Half century

aah!!!!!!!
ek aur din nikal gya aur may ka ye haseen mahina bhi nikal gya
ye mere blog ki 50th post hai to socha kyu na kuch alag likha jaye....
isliye aaj me simple bina kisi lay aur taal ke seedhi sapaat bhasa me prastut hua hu.....
last month ke last 2 din kafi rochak the......
pehle to organizational behaviour ke paper se phle PC DA ka blog pda to mja hi aa gya......yu to unki sabhi post maine padi thi lekin kuch purani aur intersting posts maine baad me padi.......mere bheetar blog likhne ka keeda unke hi kuch lekho ke karan upja tha to ...PC DA ko shat shat pranaam aur dhnyawaad............
aur rahi aaj ki baat to aaj ka din kuch jada hi khubsurat ho gya..........bhale hi maine kafi ulti seedhi harkate ki par ek aur yaadgaar din jindgi ki kitaab me jud gya...............phle to mann nahi tha kahi jaane ka ....lekin jb gya to pura din bn gya.......dehradoon se kareeban 35 km ki doorie par daakpathar gye.....aur fir waha se asan beraaz.......aur fir hui
 anand ki barsaat........barsaat means boating krne gye aur bina dubki lagye hi pure kapde aur badan gila ho gya......THANKS to abhi,ashi,shri,akki......n....mums,rupa n last bt not d least APPY.......
aur fir wapsi ke waqt shri aur abhi ji ke karnaamo ne to hsa hsa ke maar dala......bhataka to me bhi lekin me kaafi jaldi sahi jagah pahuch gya tha ......................................n at last phle akki ji ka chalaan kata fir shri ji ne ek aunty ji ko gaadi se touch krke din ka samapan kia.............ALL n ALL mast jhkass fultu fun day n unforgetabble FIRST DAY of 4th year.................ALL becoz OF FRIENDS...............:):):)

this 50th POST dedicated to all my FRIENDS....
KHUSH-DOST_AM!t........

शनिवार, 28 मई 2011

हवाए



हर दिशा से हवाए चली थी


कुछ दूर चल कर वो सब मिली थी


बनाया बसेरा एक नदी के किनारे


झूमती गाती मुस्कुरा के गुनगुनाती


सन सन बहकर राग ख़ुशी के सुनाती


हवाए चली थी


हवाए चली थी ..


कही पर मिली थी


बिछड़ने वाली है


मंजिले चुनके अपनी उड़ने वाली है


जो हवाए चली थी


कभी जो मिली थी ...क्रमश:


........:)


शुक्रवार, 27 मई 2011

शरारते

शरारतो की शाम हो गयी 
शरारते न जाने कहा खो गयी 
चलते थे 
मिलते थे 
फूल शरारतो के खिलते थे
अब तो बस  याद आती है 
वो बात आती है 
शरारते यादें मेरे संग कर  जाती है............क्रमश:
:)

शुक्रवार, 13 मई 2011

पत्थर



उस "पत्थर" की बात अलग होती है ,
उसने लाखो "चोट" खायी होती है,

फिर जाकर उसमे "भगवान" बसता है

ऐसे "दिल" का क्या करना जो बन जाये पत्थर
और फिर पूजित होने हेतु "तरसता" है!!!!

कल में पल

एक पल को बीतने में "पल" लगता है ...
आज को बनाने में "कल" लगता है ....

"जीते चल हर पल में "ख़ुशी" से ज़िन्दगी "

क्यूंकि हो ख़ुशी तो "एक पल" लगता है ...
नहीं तो "ज़िन्दगी" बीता हुआ कल लगता है ..:)

शनिवार, 30 अप्रैल 2011

डर और जश्न



मैंने कभी सपने नहीं देखे

क्यूंकि मुझे उनके टूटने का डर था

न ही बनाये रिश्ते अपने नए

क्यूंकि अपनों के छूटने का डर था

न ही दौड़ा मज़िल की ओर

भाग कर गिर जाने का डर था

न की कभी कोशिश से भी कोशिश

नाकामयाबी का डर था

जिंदगी जी सिर्फ यु ही

खुलकर जीने में मुझे बदनामी का डर था .

पैदल ही मेरा सफ़र था .

फिर आये तुम

दौड़ा दिया ,

दिखाए सपने .

चौंका दिया ,

बनाने लगा में रिश्ते ,

कोशिश किया उठकर जीने लगा.

नाकामयाबी और बदनामी को नकार दिया .

सपने टूटे फिर भी

उनके होने का मुझे जश्न था ,

रिश्ते भी छूटे पर

उनकी मीठी यादो का जश्न था ,

गिरा मैं चलकर भी

दौड़ने में थक कर चूर हो जाने का जश्न था,

कोशिशे की लगातार हजार कुछ हुई कामयाब


पर मुझे उनके होने का जश्न था,

जिंदगी जी ख़ुशी से गुमनामी का डर नहीं

मुझे जीने का जश्न था

पैदल है  अभी भी सफ़र मेरा

पर तुम जैसा दोस्त बनाने का जश्न था जश्न है जश्न रहेगा.


KHUSH!DOST!AM!T :)

बुधवार, 27 अप्रैल 2011

तन्हाई और तू



मेरी तन्हाई मुझे भाती थी

बातें चलती थी

और वो सिर्फ सुनती जाती थी

एक दिन फिर तुम आई

खिलखिला के टूटी तन्हाई

धीरे से साथ छोड़ा उसने

अकेले में साथ दिया था जिसने

अब तुम थी

और बातें चलती मैं सुनता जाता था

पल बीते कुछ और मेरी आदत जाती रही बोलने की

पर इस पल छूटा तेरा साथ इस कदर

तब टूटा मेरा सब्र . .जाने के बाद तेरे

अब न है कोई दरम्या तन्हाई और मेरे

अब दोनों एक दूजे को सुनने की कोशिश करते है . . . .:):)

रविवार, 24 अप्रैल 2011

वार्तालाप muskaan aur aavrt


aavart:
Wo swatah sehej ubharti muskaan. .
Kisi masum chehre ki jaan. . .Kaha hai?
Wo sote chehro pe upajti kuch lakiren. .Haar kr baith jate the jb. . 
to pal bhr dkh kr aa jaati ti wo sehej smarpit muskaan. .
Dhumil si dur lgti h wo niswarth saras muskaan. . .
Apurn sa akaarn ye nirdosh jahan. . .
Khojta h wai purani muskaan. . . .
Mann me khushi ki pehchaan. . .Wo muskaan wo muskaan. . . . .Aur bs muskaan

muskaan :
Logo k chehro m khusiya jhalkane vali,
nirasha m aash jagane vali,
nav chetna jagane vali,
Kya Apna rasta bhul gyi vo sundr sehez muskaan,
ya duniya ki buriyo se dr kr kahi chup gyi vo muskaan,
ya fr dukh k andhero m kho gyi vo muskaan..
Rahi bn kr dhund ri hu m vo pyari muskaan,
kahin kisi kinare kbhi mil jae toh pas le aana vo muskaan..

aavart :
Ye subah ki baat ti. . . .
abi kuch pal pehle Mujhe mili ek nahi hasi. . .
Dost mila purana,uske chehre pe thi basi. . .
Ab muskaan ko b sochta hu mjbur kru. . .
Jindagi k katu styo se na dur kru. .
Ek urja prem aur dosti ki usme bharu. . .
Wo muskaan bhtakna chhor d. . .
Mere chehre pe aa jaye. . .
Koi na chede use bs wo mann ko bha jaye. . . . .
Kisse fir se purane lvly suna d. . . .Aur jindagi haseen khushi se muskura d.

muskaan :
Kya vo urja muskaan ko vapas la paegi,
dukh aur drd ki aandhi dur kr paegi..
Kya muskaan pyar k usi paalne m jhul payegi,
kya vo chehro pe raunak la payegi..
Bhul chuki h muskaan apna ghr,
kya vo usay paalane vale k pas vapas aa payegi..


aavart :
Muskaan ka kaam h khusiya baatna . . . .
Kya kyu ka sawal nahi h bhari. . . .
Ye to bs h bhvisya ki tyaari. . .
Jb b usne aane ki thaani h. . .
Mere chehre pe likhi ek nayi kahani h. . . .
Kahani ki suruwat aur ant sukad hote h. . .
Aur muskaan k aane se phle gum thode hote h. . .
Wo sb kuch kregi. .
Palne wale se lekar jhelne wale tk ko amulya karj me bhregi. . .
Khilegi jrur wo fir se . . .
Kya kyu ki gunjais betuki reh jaegi. . .Bs khushi muskaan ko aur muskaan khushi ko paegi. . . .
:):)
kHUSh!doSt!Am!t
 


शनिवार, 23 अप्रैल 2011

mnjoor Nahi

धोखा  है  मंजूर 
सच्चाई   का  आइना   नहीं
ये  दुनिया  हंसती   बेवजह
आंसू  असल  के  भी   रोना   नहीं
मंजूर  है  बैचनी   का  महल
सुकून  का  कोना  नहीं
अपने  संग   होता  हमेशा  गलत
२रो  के  साथ  हमेशा  सही
परेशानी  अपनी  सबसे  बड़ी
किसी  की  मौत   का  भी  गम  नहीं
किसी  की  ख़ुशी  है  मंजूर
अपने  गम  में  भी  आँखें  नाम   नहीं
होता  प्रेम  बेवजह  कही
तो  चाहकर  भी  तन्हाई  है  कही .
ये  तो  चंद   पंक्तिया है .
पता   नहीं  क्या  है  "मंजूर "
जो  होना  "नहीं " चाहिए .
और  क्या  है  नहीं
जो  मंजूर  होना  चाहिए ?

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

lyrics ki koshish

छत  पर  थे  मिलते 
खुशियों  से  बातें  थे  बुनते 
यादें  सुनहरी आती  है  आज .
दोस्तों  का  ख्याल  है  बस   दिल  में .......
करता  हूँ  याद ....
यादें  सुनहरी  आती  है  आज .
हवा  चलती  थी .......धुन  कोई  मचलती  थी .....
सुनता  हूँ   साज ..........
यादें  .....यादें  सुनहरी  आती  है  आज
गहराई  है  कितनी   बातों  में  उनकी  ..
यादें  bnke  सवेरा  जो  आती  है  रोज ...
खो  जाता  हूँ  ....उस  मस्ती  के  दौर  में ...
मिलते  थे  हम
छोड़  सारे   काम  काज  .
यादें  सुनहरी .......
सिमटी  हुई  गहरी .....यादें  सुनहरी  आती  है  आज .
वो  छत  भी  है  सूनी   आज ........
बातें  है  बस  ...और  उनका  ख्याल ....
हवा  चलती  है ..पर  न  कोई  धुन  मचलती  है  आज .....
बस  यादें ... यादें   सुनहरी  आती  है  आज  ....:)

रविवार, 10 अप्रैल 2011

मंजिले यहाँ रास्ते यहाँ

मंजिले यहाँ
रास्ते यहाँ
किसकी है फिक्र
ढूँढते तुम उनको हो कहाँ
ये चाहतें ही तो रखती है तुमको तो जवाँ
मंजिले यहाँ
रस्ते यहाँ
ले ले साथ उसे जो मिले जहा
चलते चल जो नप सके ये जहाँ.........
मंजिले यहाँ रास्ते यहाँ .....:)

सोमवार, 4 अप्रैल 2011

सोमवार, 28 मार्च 2011

ख़ामोशी

यूँ तेरी ख़ामोशी मुझे कुछ भाती नहीं ...
मैं भी बनाता बहाने हसी मुझे भी आती नहीं ...
तू कहती नहीं तेरी आँखें इशारा करें ...
मेरे काबू में नहीं दिल मेरा आह भरें .........
सोचू तेरी मुस्कान वही .....
यूँ तेरी ख़ामोशी मुझे कुछ भाती नहीं ,,,,
बुरा लगता है जब तू कहे न कुछ
रूठ जाता हूँ मैं सचमुच जब तू सताती नहीं ........
मेरा दिन भी ढले न जाने कहा ..
उदासी तेरे चेहरे की जब जाती नहीं..
यूँ तेरी ख़ामोशी मुझे कुछ भाती नहीं ,,
मैं भी बनाता बहाने हसी मुझे भी आती नहीं ..
टूटी जो ख़ामोशी हँसी आ गयी.
मेरा दिल अब तेरे काबू में .....
ख़ुशी छा गयी ...
जो तू आ गयी .....जो तू आ गयी ......
हुआ रिश्ता तेरा-मेरा और भी जुदा ...
...दुनिया की नजर में हमारी तकदीर आ गयी ......
टूटी ख़ामोशी जो ......दिल पे मेरे धडकन की ख़ुशी छा गयी ..:)

गुरुवार, 10 मार्च 2011

सूखे वृक्ष



साथ सूखे वृक्षों की कतार

वक़्त बीता बरसो का . . . .

न आई उन मे बहार . . . .

रोज सुबह करते ओस की बूँद का इंतज़ार . . .

पर न फूटी अब एक भी कोपल जिसमे बसा हो प्यार . . .

रोज सुबह भीग कर तरबतर ओस में . . .

सपने सोचते . . .

आंसू मिले ओस में पोछते . . . .

यु ही बरसो और बीत गये . . .

मौसम न जाने कितने निकले . . .

बसंत उनका कभी न आया . . . .

बसा रहा उनके तनों में काला साया . . . .

वो महसूस करते हर धूप . . .

पर करने छाव उनकी डाली पर . . .

एक भी पत्ता न आया . . . .

आज मेरी नजर पड़ी उनपर . . .

मैंने अपने और उनमे कुछ जादा अंतर न पाया . . .

पर देखते ही मेरे एक चमत्कार हुआ . . . .


अगली सुबह निकली कोपल नयी . . .

मुझे भी आश्चर्य हुआ . . . . . . .

पर पता चला वो चमत्कार था . . .


उस एक पेड़ के गिरने का फल . . . .

हरे भरे होने लगे वो जो सूखे थे कल . . . . .

क्यूंकि उनका दोस्त गिरा उनके लिए . . .

उनकी जड़ो में दे गया प्रेम की उर्वरा शक्ति . . . . .

अब पंछी चहेकते और छाव लगती.

दोस्ती और प्रेम की शक्ति.................




KHUSH!DOST!AM!T.....:)












शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

नन्ही चिड़िया


एक प्यारी सी चिडिया
हस्ती खेलती फुदकती अपनी मित्र मंडली के साथ
उनसे बाँटती अपनी खुशिया और हर बात
अपने से ज्यादा यकीन था उसे अपने मित्रो पर
उसके नन्हे पंख  सिर्फ  दिखते नन्हे थे
वो तो उड़ान भरती थी सातो असमानों में
मजबूती थी उसके इरादों में
न डरती थी वो तूफानों से
दोस्तों का संग लगता सबसे न्यारा उसे
इतने अच्छे दोस्तों के साथ डर किसका था उसे
एक दिन एक बाज आया
उसकी क्रूरता को कोई समझ न पाया
चिडिया के सारे दोस्त घुल मिल गए उससे
उसके साथ जोड़ने लगे चिडिया के किस्से
वो तो थी प्यारी और भोली
वो बाज की प्यारी प्यारी बातो में होली
उस बाज को दिया सहारा और साथ सबने
क्युकी विश्वास और प्रेम ही तो भरा चिडिया और उसके मित्रो के मन में
वो भांप न पाई उसकी हैवानियत को
दोस्तों का दोस्त है ये सोचकर भूल कर बैठी वो
शायद चाहने लगी थी वो उसको
वो भी दिखावा  करता , था चतुर जो
चिडिया उसके जाल में थी
उसके दोस्तों को भी खबर न थी
उसके तेज नाखून,नुकीली चोच कर सकते थे उसे नुक्सान
पर चिडिया को छलना न था इतना आसान
करके हिम्मत तोड़ दिया नाता उसने उस बाज से
चिडिया भूल गयी हसना गाना फुदकना डाली डाली
पर एहसास हुआ उसे जैसे ही
दोस्त तो उसके पास है ही
वों भुला बैठी बाज की करतूतों को
कहा , किया उस बाज ने जो
पर वो बाज अब भी बाज न आया
उसने चिडिया के दोस्तों को बहकाया
उसके दोस्त बहकने  लगे
चहकती चिडिया को टोकने लगे
पर जब दोस्ती का ख्याल आया तो खुद को रोकने लगे
उस बाज की क्रूरता और चिडिया की मासूमियत के बारे में सोचने लगे
उनको एहसास हो चुका था ,
बाज धोका दे रहा है
सब गलत ही करने को कह रहा है
उन्होंने बिन बताये  बाज को ,
बदल लिया अपने अंदाज को
तैयार है वो सब के सब बाज का सामना करने को
वो चिडिया के दोस्त फिर से विश्वास लौटाना चाहते है
चिडिया के बाग़ में फूल दोस्ती के रंग बिरंगे महकाते है
अब ना जाने बाज क्या करेगा
अपने कलुषित मन को कहा भरेगा
भटक रहा है वो और पंछियो की तलाश में
शायद कोई मिले उसे जो करे उसकी इच्छा पूरी


लेकिन ऐसे बाजो की इच्छा हमेसा रहती है अधूरी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

रिश्तो में फिर वही मिठास पुरानी ढूंढ़ता हूँ
बातो में फिर से प्यारी छोटी कहानी ढूंढ़ता हूँ
बिखरते हुए इन पलो में जुड़ने की आस ढूंढ़ता हूँ
हो चुके सब मतलबी शायद, भाव निस्वार्थ ढूंढ़ता हूँ
समझदारी की इस दलदल में मासूमियत का कवल ढूंढ़ता हूँ
कहता था पहले
" ढूंढ़ तो हर जगह मिलती है जिंदगी ...."
अब सिर्फ उसकी तलाश ढूंढ़ता हूँ

मंजिल जिसे पास समझा था, उसे पाने की प्यास ढूंढ़ता हूँ
पहले हँसता था अकारण
अब हर हँसी का जवाब ढूंढ़ता हूँ
आधी अधूरी जितनी भी पढ़ी
जिंदगी की खोयी किताब ढूंढ़ता हूँ
खुश, ख़ुशी से परे सही मायने में
जिंदगी की किताब ढूंढ़ता हूँ
:)
:)

बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

कुछ पंक्तिया आंग्लभाषा में



um dark inside....give me a reason to stay bright

um wasted in ugly crowd....give me a reason to feel proud..

m loosing my way in dark roads .....give me a shine..

um dark inside....give me a reason to stay bright

i love or not its hard to judge .....inside me a dark smudge.....

...be ma guide...um dark inside....give me a reason to stay bright..

khush!dost!am!t

.

.

.
Wenever i waited for sm1. .that sm1 never came, wenevr things went wrng...there ws nthing to blame,it ws nly me holding 1 end.waiting for sm1 to do the same, but wenevr i waited fr sm1 that sm1 nevr came. . .sm1 says life is a game. . Nevr wait fr sm1, who never came. . .i said its easy to wait,wen u hv hope, dnt mattr that sm1 is late. . . . . I'll b waiting forever. .khush!dost!Am!t
.

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

आलस

कुछ स्वप्न अधूरे रह जाते है ,
जिनको नींद प्यारी होती है ,
जो सोते है कर्म छोड़कर ,
उनकी किस्मत भी सोती है
अब जागे ,
जब जग सोया
किस्मत फूटी ,
सबका प्यार खोया
वक़्त के साथ चलना सीख लेते है,
और जो सोते है पथ पर
उनकी मंजिल खोती है ,
अब पहुचे वहां ,
पहले पंहुचा जग जहाँ
फूटी किस्मत--फिर से तुमने कहा
इस बार सोना सही,
पर थोड़ी देर से
और कहना नहीं,
मेरी किस्मत फूटी
इस पहर से ,
..............:)

रविवार, 23 जनवरी 2011

"meet wid frenz" from draft

एक पल मिला और हम हसे खूब हसे ..
चेहरे लाल ,पसीना टपकता रहा माथे से मुह तक ..
पर हम ख़ुशी में तरबतर सिर्फ और सिर्फ यादो से ..
यु तो यादें हमेशा रुलाती है पर यादो का मूर्त रूप हँसा गया …
हम उछले कूदे मस्त ,बेफिक्र बिन लिहाज बडबडाते रहे ..
क्यूँ ..?...क्यूंकि दोस्त मेरे साथ थे जिनकी याद आँखें गीली कर जाती थी ….
पर जब आज मिले तो हँसी ख़ुशी से आँखें गीली और मन बह गया ….
बस  आनंद का असीम भाव ख़ुशी के साथ मन में रह गया …..
विचारो की स्वतंत्रता और शब्दों पे न कोई पाबन्दी, पूर्ण सुरक्षा का भाव …
दिल और दिमाग से सारे फितूर गुल, न कोई मरहम न कोई घाव ,,,
बंदिशे हटी यादें छटी मन की अनचाही मुराद मिली …
सोचा काश ये पल और लम्बे होते या कहू कभी ख़त्म न होते …
पर ये पल अपने आप में सम्पूर्णता का एहसास दे गये ….
यु तो स्कूल में बचपन से गया ..
पर ये कुछ ख़ास था एक दोस्त ही नहीं मेरा सहपाठी भी मेरे साथ था …..
नहीं बता सकता तू गाली दे या बकवास, कोस मुझे जी भर के ..
पर तेरे से मिलना ये सब सुनना अनमोल सा है ……..
हाँ अनमोल भी सायद छोटा सब्द है बस ये है एक एहसास …एक कहानी …..कभी न ख़त्म होने वाली …
मिलते रहना दोस्तों ये दोस्त इंतज़ार करेगा …….हमेशा हमेशा …..और हमेशा ……..
Khush!dost!am!t………….:)


शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

"वो" from drafts

एक धीमी धीमी मुस्कान ने घेर लिया मेरे होठो को
वो उस मुस्कान को हँसी में बदलना चाहता
बात करके उस से चैन मिला इतना
पर वो उस चैन को सुकून में बदलना चाहता
हर बात में ख़ुशी जो झलकती थी
वो हर ख़ुशी को बात में बदलना चाहता
मुझे कम लग रही थी यादें 
वो हर याद को याद करना चाहता
हर किसी को उसका साथ लेकर चलना
न है जो साथ उनके लिए भी फिक्र करता
जुड़े रहने की कोशिश में अपने हर रिश्ते  से
जो बनाया कभी अगर  भूले भटके  से भी
मेरा एक जन्म कम लगता है  मुझे
पर वो इस एक जन्म में जन्मो की हसरत पूरी करना चाहता
मेरा तो दायरा सीमित है
पर वो असीमित अनंत को दायरों में बाँधना चाहता
यादें मेरी धूमिल हो जाती एक पल में
वो हर पल को संजोना चाहता
मेरी मुस्कान चंद लम्हों की
वो हर लम्हे को मुस्कुराना चाहता
मेरा खुद के नियमो को तोडना हमेशा
वो नियमो के लिए खुद टूटना चाहता
पर शायद ही समझ पाया कोई आजतक
के वो क्या है समझाना चाहता ....................."मेरे दोस्त"

 
 

KHOJ

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