बुधवार, 1 दिसंबर 2010

पहेली

ये कविता एक एकतरफा प्रेमी की diary से ली गयी है.....plz dont laugh














प्यार  वो  पहेली   है   जिसे बूझता   है  हर कोई
पर  समझ   न  किसी  के  आती  है
बड़ी  नटखट  है   उसकी  सहेली  भी
पर  याद तो सिर्फ  उसकी  ही   आती  है 
जाने  क्या क्या बहाने बना  के  हमको  बहलाती  है
सोचती हमारा ध्यान उनसे  भटक  जाएगा
पर  याद  तो  बाद में उसकी  उन्ही बहनों  के कारन आती है
अलविदा  कह  के  जब  वो  चली  जाती  है
अगली  सुबह  मिलने  के  लिए  हमारी  रात  कट  नहीं  पाती  है
तब हम  खो  जाते  है  उसके  ख्यालो ,बहानो  में
सच  में  8 घंटे  की  मस्त  नींद  कही  नहीं   जाती  है
पहले  कहती  है  तारीफ़  करो
और  जब  हम  शुरु  हो  जाते  है  तो  शरमा  जाती  है 
हमे  किसी  और  के  साथ  बात  करता देख  ले
तो  उस  समय बड़ा  मुस्काती  है
बाद  में  न  जाने  क्यूँ  रूठकर  हमसे  दूर  बैठ  जाती  है
मनाना  हमे  आता  नहीं
दूर  उनको  देखा  जाता  नहीं
इसलिए  अंत  में  खुद  ही  मान  जाती  है
गीत  प्रेम  के  गा  गा  कर  बड़ा  जलती  है
कशमकस   में  फंसा  के  हमको  तडपाती  है
कितनी  बार इज़हार  किया  हमने  प्यार  का
पर  हर  बार  घुमा  फिरा  के  जवाब  दे  जाती  है
यु  तो  सुना दू  दोस्तों  तुम्हे  इस  पहेली  के  सभी  हिस्से
कहानी  और  किस्से
पर  अब  मुझे  पता  है
ये  बकवास  पड़ने  में  आपको  बड़ी  बोरियत  आती  है
प्यार  वो  पहेली  है  जिसे  बूझता  है   हर  कोई
पर  समझ  न  किसी  के आती  है ………..क्रमश ...

KHOJ

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