सोमवार, 14 जून 2010

विश्वास


उलझने  ज्यादा  राहते  कम  है 
उम्मीदें  ज्यादा  चाहतें   कम  है 
फिर  मिली  एक  रौशनी 
अब  उजाल़े  ज्यादा  अँधेरा  कम  है 
जिंदगी  ज्यादा  डर  मौत  का  कम  है 
ख़ुशी  ज्यादा  दर्द  दुःख  का  कम  है 
मंजिल  साफ़  है  भटकाव  कम  है 
पास  गया  उस  रौशनी  के  तो  पता  चला 
वो  खुद  में  बहुत  कम  है 
उसमे  भी  द्वेस  जादा  प्रेम  कम  है 
अन्धकार  ज्यादा   रौशनी  कम  है 
सवाल  ज्यादा  जवाब  कम  है 
दुविधा  ज्यादा  विकल्प  कम  है 
वो  रौशनी  जो  प्रकाशित  थी  मेरे  मन  में  बुझ  रही  थी 
लेकिन  पहले  मुझसे  आकर  पास  वो  मेरे  बोली 
मैं  प्रकाशित  तुजसे  थी 
“तेरी  आशा 
तेरी  प्रेरणा 
तेरा  उत्साह 
तेरा  विश्वास“
मुझे  हर  पल  दे  रहा  उर्जा   था  
क्यूंकि   इस  दुनिया  में  बुराई  बहुत  ज्यादा   और  अच्छाई बहुत  कम  है 
अब  न  रौशनी  को  न  मुझे  कोइ  गम  है 
उसमे  है  जो  अच्छाई  भले  ही   वो  कम  है 
मैं  भी   हूँ   उत्साहित   मेरा  मन   अब  सम  है 
वो  प्रकशित  रहे  हमेशा  उज़ाला फैलाये  चाहे  उसमे   रौशनी  कम  है !!!!

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