ये मन विवश होता ,पता नहीं कैसे कहू कब
ये चाहता है पास जाना
डरता है कही न करे कोई नुक्सा
चाहता है और करीब आना
डरता है कही पड़े न दूर जाना
बातें बनता , सपने बुनता
कोई भी कह ले कुछ नहीं सुनता
इसे लगी है प्रेम की धुन
कभी सोचता उसकी भलाई के लिए
पर स्वार्थ अपना ही देखता है
न जाने क्यों फिर भी प्रेम करता है
अगर भुलाना भी चाहे उसे
याद आता वो दुगना हर सुबह
कह भी नहीं सकता कर भी नहीं सकता कुछ
क्या वो प्रेम करता है सचमुच
अजीब है पर सत्य है
"कोई भी नहीं चाहता अकेले रहना
फिर कैसे छोड़ देता है अपनों को अकेला"
रोता है तो सिर्फ अपने लिए
सिर्फ अपने लिए जीए तो क्या जीए
कर तू प्रेम हमेशा
न कर अपेक्षा
यही तो देती है हमेशा दर्द और दुःख
"प्रेम तो है केवल सत्य और सुख"
क्या में कर पाउँगा ये सब या है कोरी बकवास
निभाना तो चाहू हरपल जब तक है मेरी सांस..........२६/१०/२००९

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