मंगलवार, 17 जनवरी 2012

आवर्तिकाए : भाग २

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प्रथम बार जब आवर्तिकाए पोस्ट की थी तो काफी अच्छी  प्रतिक्रियाये मिली.
और काफी दिन हो गये "आवर्त" से की गयी बातो को अपने ब्लॉग में नहीं प्रकाशित कर पाया आज समय भी है   और मौका भी तो फिर देर किस बात की शुरु करता हूँ आवर्तिकाए भाग २

"मेरी और आवर्त की कुछ बातें जिनमे न छंद है
न ही लय न ताल है
बस जिन्दगी से जुड़े कुछ सवाल है
इन्ही बातो को मैंने नाम दिया है आवर्तिकाए"


ज़िन्दगी  से  उम्मीद  ना की  "आवर्त"
जी    भर  के  इसको  जी
मिलती  है  ख़ुशी.


"आवर्त" जीना  कुछ  इस  कदर  जिंदगी  की
ज़िन्दगी  भी  खुश-कहे  तुझसे  इसने मुझे  जिया  है


अफ़सोस  तो  खाली  समय  में  किया  जाता  है  "आवर्त"
आजकल  फुरसत किसे   है  अपने  गमो  से


कुछ  कहानिया  माँ  ने  सुनाई  थी  "आवर्त"
चाह  के  भी  आज  याद  नहीं  आई....


इसको  लिखू  उसको  लिखू  किस -किस  याद  को  लिखू   "आवर्त"
उसकी  हर याद  हर  पल  आकर  एक  कविता  कर  जाती  है


पत्थर  से  बात  करना  ....."आवर्त"....."शायद" भगवान्  मिल  जाये ....
बेवजह  गरूर  लिए इंसान से ना करना ..."जरुर" शैतान  मिल  जाएगा


तेरी  ख़ुशी  गयी ........"आवर्त"
तेरे  इस  रूखेपन  से


रिश्तों  में  दरार  कब  आती  है  ??
"आवर्त" : जब  बातें  बहस बन  जाती  है.


कितनी  हसरते  है  तेरे  मन  में  ...."आवर्त "
एक "पूरी" तो  दूसरी  "अधूरी" रह जाती  है


तेरे  कटाक्ष  परिस्थिया  नहीं   सुधारते ..."आवर्त"
हृदय  वेदना से  भर  देते   है .......


तेरे  और  "ग़ालिब"  के  बीच  एक  ही  फर्क  है  ..."आवर्त"
ग़ालिब  का  दिल  से  लिखा  लोग  दिल   से  पढते  थे.


तेरा  कुछ  नहीं  होने  वाला  ..."आवर्त"..
बातों  की  भीड़  में  ही  खो  जाएगा  तू ...


तेरी  बातों  ने  रुला  दिया  .."आवर्त"
लिखने  लायक   कुछ  "बचा" नहीं ....................


गलतियों   और  मजबूरियों  का  मिजाज
थोडा  समझा   हूँ  मैं   आज,
गलती  अपनी  हो  तो  मजबूरी  लगती  है ..."आवर्त"
और  दूसरो  की  "मजबूरिया" गलती.


अरसा  बीत   गया   "हिचकी" आये  हुए  "आवर्त"
लगता  है  अब  तो  तुझे  कोई  याद  भी  नहीं  करता ....
सफ़र जारी है क्रमश :

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