निरर्थकता का प्रतीक हूँ, 
सार्थक सत्य को खोज रहा 
भावो से घिरकर, प्रयास मैं
भावो से घिरकर, प्रयास मैं
भाव-शून्य होने हेतु कर रहा !
प्रारंभ में ही था चला,
रुदन मेरे अंत का 
क्षण भर में सीखा चलना
क्षण भर में सीखा चलना
देख लिया गंतव्य  अपने पंथ का
प्रति क्षण घुलता रहा भाव में किसी
भाव-शून्यता तलाशता अब मैं कही !!
प्रति क्षण घुलता रहा भाव में किसी
भाव-शून्यता तलाशता अब मैं कही !!
वास्ता किया अपनों से, 
कभी किया अजनबी से किसी
किसी की कटुता और मिठास कभी,
कभी किया अजनबी से किसी
किसी की कटुता और मिठास कभी,
भावो  का मायाजाल, 
भ्रान्तिया  मेरे मस्तिस्क में बसी
भाव-शून्यता तलाशता अब मैं कही!!!
भाव-शून्यता तलाशता अब मैं कही!!!
मित्रता और प्रेम से 
भाव-पूर्ण कुशल-क्षेम से 
भव्यता भाव की बढती रही
भव्यता भाव की बढती रही
अब न चाहता हूँ भाव कोई 
भाव-शून्यता तलाशता अब मैं कही!!!
हो चुका में भाव-शून्य, 
या उस विधाता ने है कोई मंत्रणा (साजिश) रची 
हो चुका मैं पूर्ण विमुख भावो से 
या कही न कही हृदय में एक राइ भाव  की है बची 
भाव-शून्यता तलाशता..........................क्रमश : 



अब न चाहता हूँ भाव कोई
जवाब देंहटाएंभाव-शून्यता तलाशता अब मैं कही!!!
bhav pravan kavita
Sukria anamika ji
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