बुधवार, 10 अगस्त 2011

आजकल गलियों में .......

यूं तो मैं  हमेशा उन गलियों से गुजरता था,
अब भी गुजर जाता हूँ कभी कभी ,
पर अब वो एहसास साथ नहीं होता,
जो पहले यादो से होकर वादों में बदलता था।
साइकिलों पे बजाते घंटियाँ हम गुजर जाते थे,
हवा का झोंका बनकर उड़ाते हुए धुल भरे गुबार,

या भीगी बारिश में भी पानी से भरे गड्ढों पर चलकर
भीगकर साथ में चाय का दौर चलता था।
जो अब वादों से यादो के धुएं में बदलता था।
छुट्टी होने पर उपर तक आते हुए भी आधा घंटा लगता था,
सम्राट या करिश्मा इस पर मंथन चलता था,
या ट्यूशन की और बढ़ते थे कदम हँसते हुए,
फिर वापिस आने का इंतजार लगता था,
वही अब यादो का सहारा लगता था,
वही अब यादों के दौर से अलगाव का जवार लगता था।
अब सिर्फ यादो क कुछ पल हैं सिमटे हुए,
बिखरे और अलग होते बिछड़े हुए,
करीब आने को बेकरार होते हुए,
निभाने को हर वो कसक ज़माने की,
इक कसक का अम्बार लगता है,
वादों में भी और यादों में भी....
और शायद हमेशा रहेगा.......
कुछ यूं ही...............................................


आपका "समपूर्ण ख़ुशी"


1 टिप्पणी:

KHOJ

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