दोस्त की कलम से :
डरता हूँ अब चलने से , ज़िन्दगी की ओर ...
ज़िन्दगी ने सुनाये मुझे कई ग़मों के शोर ...
मैं हार गया हूँ, चुने हुए कुछ पलों के साथ ज़िन्दगी यु ही बस गुज़र रहा हूँ..
कदम बढ़ाने से डरता हूँ ,
इस घोर सन्नाटे से डरता हूँ,
जाने इस अँधेरे में कहाँ खो गया हूँ ,
खुद से खुद ही का अस्तित्व मांग रहा हूँ ,
चुने हुए कुछ पलों के साथ ज़िन्दगी युही बस गुज़र रहा हूँ ,
डरता हूँ चलने से अब जन्दगी की ओर ..
ज़िन्दगी ने सुनाये मुझे कई ग़मों के शोर ...
आ मेरे साथ चल,
ले चलूँ तुझे जिंदगी की ओर ..
आ सुनाऊ तुझे,
ज़िन्दगी में बिखरी खुशियों का शोर ..
ज़िन्दगी में उकेरे रंगों को देख ,
पहचान अपना रंग,
फिर आ चल मेरे संग,
ले चलूँ तुझे जिंदगी की ओर ..
जहाँ तू पायेगा अपनी जिंदगी की डोर..
हरा नहीं है तू ,
बस थोडा थक गया है ,
आगे बढ़ते-बढ़ते ,
बस कहीं रुक गया है,
बंधा है जिस काली घटा से घन -घोर,
दे उसे झक-झोर ,
आ ले चलूँ तुझे ज़िन्दगी की ओर ..
देख बाहें पसारे खड़ी हैं तेरी खुशियाँ उस ओर..
आ ले चलूँ तुझे जिंदगी की ओर ...:-)
मेरा ख़याल उपरोक्त पंक्तियो के लिए
"तेरा ही साथ था "
डरता भी था ज़िन्दगी से तो भी चलता था ज़िन्दगी की ओर . .
तेरी मुस्कान की खनखनाहट के आगे बौना लगता था ये ग़मों का शोर . .
हारने का विचार पसरा था मन में . . .
पर पल -पल बढ़ता रहा तुम जो थी जीवन में . .
अँधेरे और सन्नाटे में मेरा अस्तित्व
खोने ही वाला था . .
पर वो भी तेरे अस्तित्व से था जो कहाँ हार मानने वाला था . . .
और अब जो तुने खुद हौसला दिया है . .
सुनाया खुशियों का राग और रंगों का राज खोला है . . .
ज़िन्दगी की डोर आ गयी हाथ में थकान कर दूर तूने बस उमंगो का रस घोला है . . .
रुका जहाँ था वहां से मंजिल नजर आने लगी है . .
हर काली घटना बीता कल जो तू मुस्कुराने लगी है . . .
दिखाया बाहें खोले खुशियों को जो तुमने वो तो तुम ही थी . .
अब बस चलता रहूँ ज़िन्दगी में संग तेरे . . .
फिर चाहे सुनाई दे शोर खुशियों का या हो गम मेरे . . .
By : KhusHDOSTAm!T
डरता हूँ अब चलने से , ज़िन्दगी की ओर ...
ज़िन्दगी ने सुनाये मुझे कई ग़मों के शोर ...
मैं हार गया हूँ, चुने हुए कुछ पलों के साथ ज़िन्दगी यु ही बस गुज़र रहा हूँ..
कदम बढ़ाने से डरता हूँ ,
इस घोर सन्नाटे से डरता हूँ,
जाने इस अँधेरे में कहाँ खो गया हूँ ,
खुद से खुद ही का अस्तित्व मांग रहा हूँ ,
चुने हुए कुछ पलों के साथ ज़िन्दगी युही बस गुज़र रहा हूँ ,
डरता हूँ चलने से अब जन्दगी की ओर ..
ज़िन्दगी ने सुनाये मुझे कई ग़मों के शोर ...
आ मेरे साथ चल,
ले चलूँ तुझे जिंदगी की ओर ..
आ सुनाऊ तुझे,
ज़िन्दगी में बिखरी खुशियों का शोर ..
ज़िन्दगी में उकेरे रंगों को देख ,
पहचान अपना रंग,
फिर आ चल मेरे संग,
ले चलूँ तुझे जिंदगी की ओर ..
जहाँ तू पायेगा अपनी जिंदगी की डोर..
हरा नहीं है तू ,
बस थोडा थक गया है ,
आगे बढ़ते-बढ़ते ,
बस कहीं रुक गया है,
बंधा है जिस काली घटा से घन -घोर,
दे उसे झक-झोर ,
आ ले चलूँ तुझे ज़िन्दगी की ओर ..
देख बाहें पसारे खड़ी हैं तेरी खुशियाँ उस ओर..
आ ले चलूँ तुझे जिंदगी की ओर ...:-)
मेरा ख़याल उपरोक्त पंक्तियो के लिए
"तेरा ही साथ था "
डरता भी था ज़िन्दगी से तो भी चलता था ज़िन्दगी की ओर . .
तेरी मुस्कान की खनखनाहट के आगे बौना लगता था ये ग़मों का शोर . .
हारने का विचार पसरा था मन में . . .
पर पल -पल बढ़ता रहा तुम जो थी जीवन में . .
अँधेरे और सन्नाटे में मेरा अस्तित्व
खोने ही वाला था . .
पर वो भी तेरे अस्तित्व से था जो कहाँ हार मानने वाला था . . .
और अब जो तुने खुद हौसला दिया है . .
सुनाया खुशियों का राग और रंगों का राज खोला है . . .
ज़िन्दगी की डोर आ गयी हाथ में थकान कर दूर तूने बस उमंगो का रस घोला है . . .
रुका जहाँ था वहां से मंजिल नजर आने लगी है . .
हर काली घटना बीता कल जो तू मुस्कुराने लगी है . . .
दिखाया बाहें खोले खुशियों को जो तुमने वो तो तुम ही थी . .
अब बस चलता रहूँ ज़िन्दगी में संग तेरे . . .
फिर चाहे सुनाई दे शोर खुशियों का या हो गम मेरे . . .
By : KhusHDOSTAm!T
बहुत ही खुबसूरत
जवाब देंहटाएंऔर कोमल भावो की अभिवयक्ति......