शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

सार लिखूँ



कण कण व्याप्त हृदय में  भ्रष्टाचार  लिखूं ?

निजता  के  सूर्य  से  तपता  कटु-संसार  लिखूं ?
मनु-पुत्र  के  हाथो  ही  प्रकृति  का  संहार   लिखूं ?
हुए  जो  बेघर  बेसहारा  उजड़ता  उनका  परिवार  लिखूं ?
लोभी-क्रूर-क्रोधी  समाज  में  भावनाओ  का  व्यापार  लिखूं ?
विवादों  से  खेलता  मीडिया  उसका   व्यभिचार  लिखूं ?
सफ़ेद  पोश  नेताओ  से  भरे  कारागार  लिखूं  ?
गला  घोटते  भाई-चारे  का,  स्व-हित-हेतु  प्रतिकार लिखूं  ?
बसा  मृदु-मन  में  घनघोर  अन्धकार  लिखूं ?
.............................."आवर्त"..............................................
कुछ  पर   तो   कलम  घिसने  का  भी  अफ़सोस  होता   है .................
सो  पल  दो  पल  में  ढाई  आखर  का  प्यार  लिखूँ..
खुशियों  का  छोटा  सा  संसार  लिखूँ...
तेरी-मेरी   बातो  की  भरमार  लिखूँ.....
बुजुर्ग   हो  गये  अपने   संस्कार  लिखूँ .....
अपनी  ही  जीत  अपनी  ही  हार  लिखूँ........
२-४
पंक्तियो  में  मैं   तो  बस   ज़िन्दगी  का  सार  लिखूँ...........


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KHOJ

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