सोमवार, 13 सितंबर 2010

प्रयासित

द्वार  अपने  आप  खुलेगा
हमेसा  सोचते  रहे  यही
खटखटा  कर  जबकि  निकल  चुके  थे  कई
भावना  के  साथ  प्रयास  भी  था  जरुरी
क्यों  इंतज़ार  किया  तुमने  युही
माना  के  प्रेम  सत्य  था  तुम्हारा
परन्तु  व्यक्त  करने  पर  ही   मिलता  है  सहारा
क्यों  करते  हो  अपेक्षा  इस  स्वार्थी  दुनिया  से
के  कोई   पढने  को  आएगा  तुम्हारे  नेत्रों  की  सचाई  को
माना  तुम  हक़दार  थे  उस  पुरस्कार  के
परन्तु  दावा  तो  पेश  करना  था
थोडा  सा  दिखावा  ही  तो  करना  था
रह  गए  पीछे  सोच  के  हमेसा
के  भाव  तुम्हारे  सचे   और  कर्म  है  अच्छे
पर  इस  दुनिया  को  दिखाना   पड़ता  है 
जो  है  तुम्हारे  पास  सीखाना  पड़ता  है
जब  कोई  दोस्त  मुझसे   पूछे
क्या  हम  युही  दोस्त  रहेंगे  सच्चे
मैंने  कहा  बिलकुल  अगर  हम  रहे  इंसान  इतने  ही  अच्छे
जीवन  में  बदलाव  आएगा
पर  हर  रिश्ता  ये  ‘आवर्त ’ निभाएगा
अब  तो  जो  है  दिखाना   सीखो
हदों  में  रहकर 
हमेसा  हे  चुप  मत  रहना  गम  सहकर
एक  बार  द्वार  खुलेगा  अपने  आप
परन्तु  खटखटाना   तो  सीखो
इस  दुनिया  में  रहने  का  यही  है  तरीका
जिसने  न  किया  इंतज़ार  ,हर  प्रयास  है  उसका  विजेता  सरीखा ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
………………..KHUSh!........dOST!...........am!t

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KHOJ

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