बुधवार, 14 अप्रैल 2010

wo bhi dukhi tha


आज जब देखा उसे बेंच पर टिकाए सर
थोड़ा सा घूमा मेरा दिमाग इधर उधर
फिर पूछ बैठा मैं किसी से क्या हुआ है इसे
कभी भी दुखी देखा था जिसे
आज क्यु वो गमगीन है
मुझे तो लगता था शायद यही है वो
दुनिया जिसकी हर पल हसीन है
और तो और वो यही नहीं थमा
अचानक जब दिखी उसकी एक झलक
सन्न सा था मैं
सकते है आंसू उसकी आँखो से भी छलक
क्यू था वो आज इतना उदास खोया खोया
उठने के बाद भी बेंच से थोड़ा सोया सोया
पूछ्ते रहे सभी
कुछ तो बताए कारण
पर मैं ही था जिसे पता चला कुछ
आँसू इसके भी सकते है सचमुच
धोखा देना आसान है दुनिया को
बजाय इसके कि दो तुम खुद को
अब वो उठ चुका था
मोती जो पिघला था अब वो सूख चुका था
फिर चढने लगी रंगीनियत उसके मिजाज में
आने लगी वही पुरानी शरारत उस्के अन्दाज में
चहक कर फिर से सताने लगा पूर्ववत सबको
छुप गये थे सारे आँसू अब जो
दिखाने लगा फिर से अपनी झूठी खुशी
पर आज का ये एहसास मुझे कुछ सिखा गया
जाने अन्जाने वो सब कुछ दिखा गया
कि खुश रहना शायद सबकी मजबूरी है
पर रोना हर पल ना सही कहीं कहीं जरूरी है।
खुशीदोस्तीअमित्……………………………


4 टिप्‍पणियां:

KHOJ

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