मैं हमेशा चुप रहा
अँधेरे सा घुप्प रहा
जाने क्यों सबसे दूर अलग
न कोई पहचान बिलकुल थलग
जता न सका किसी को कभी
दबाता रहा दिल के भाव सभी
आज जब देख रहा हूँ अतीत की खिड़की में
मेरी अहमियत क्या थी उसमे
सोच में पढ़ रहा हूँ
अब बस कुछ ठंडी आहे भर रहा हूँ
क्या आज भी बदला है कुछ
कही तो होगी मेरी जरुरत किसी को सचमुच
अतीत कह रहा है
तेरी कोई पहचान नहीं मेरे अन्दर
बिन भूत के वर्तमान का भविष्य है तू
क्या होता है ऐसा भी
गहरी सोच बड़ी मायूसी है
कभी तो कुछ किया होता
बीज बनकर हमेशा जमीन के ऊपर न पड़ा रहता
अंकुरित होता और न बनता एक विशाल वृक्ष पर पौधा ही सही
क्यूँ आज “आवर्त” को हो रही है अपनी तलाश कही
कल तो वो अनजान था
दुनिया में जिन्हें दोस्त कहता था
उनके हे फैसलों से अनजान था
आज भी बदला है क्या कुछ
बस जो थे पुराने किनारे
उन पर जमी धूल मुझे नया समझ रही है
पर क्या कोई खुद से चालाकी कर पाया है
क्यूँ आज “आवर्त” को हो रही है अपनी तलाश कही
कल तो वो अनजान था
दुनिया में जिन्हें दोस्त कहता था
उनके हे फैसलों से अनजान था
आज भी बदला है क्या कुछ
बस जो थे पुराने किनारे
उन पर जमी धूल मुझे नया समझ रही है
पर क्या कोई खुद से चालाकी कर पाया है
बाहर से बदला है ये ‘आवर्त ’
पर क्या कोई अपने आपको अन्दर से बदल पाया है !!!
प्रश्न मेरा हमेशा मुझसे ही रहेगा
क्या मेरा अस्तित्व हमेशा युही उपेक्षा सहेगा
कल बीत गया उसका तो हमेशा मलाल रहेगा
पर आज जो जीत गया
कल उसका ही इतिहास बनेगा
कल से मुझे शिकायते नहीं
गलत मै भी था कही न कही
जीवन सरिता चलती रहेगी
अब तो सीखा है कुछ भूत से
अब यह ‘आवर्त’ भविष्य्ता कहेगी !!!!!
२८-0२-२०१०
पर क्या कोई अपने आपको अन्दर से बदल पाया है !!!
प्रश्न मेरा हमेशा मुझसे ही रहेगा
क्या मेरा अस्तित्व हमेशा युही उपेक्षा सहेगा
कल बीत गया उसका तो हमेशा मलाल रहेगा
पर आज जो जीत गया
कल उसका ही इतिहास बनेगा
कल से मुझे शिकायते नहीं
गलत मै भी था कही न कही
जीवन सरिता चलती रहेगी
अब तो सीखा है कुछ भूत से
अब यह ‘आवर्त’ भविष्य्ता कहेगी !!!!!
२८-0२-२०१०
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