पूछते है जब सब "कुछ लिखा नहीं ". .
तो सोचा कुछ पल मैंने भी यू हीं. .
तो मन में आया ख्याल यही . .
दिल में उम्मीदों का हौसला मंद था . .
शायद इसलिए लिखना बंद था . .
खुश होकर जब मैं झूमता हूँ ..
तो लपक कर कलम कुछ लिखता हूँ . .
दुखी होता हूँ तो उसकी भी मौज मनाता हूँ . . .
पकड़ कर कागज कुछ लिख जाता हूँ ..
पर जब दिल औसत होता है ..
हर भाव अपना भाव खोता है ..
मैं भी छोड़ता चलता हर पल जो कलम से सिमट सकता था . .
क्या कहू मन में ऊह-पोह का कैसा द्वंद था ..
शायद इसलिए लिखना बंद था . ,
खुद के लिए समय मिलता था खुद की व्यस्तता से . . .
और दूसरो की अच्छाई मैं देख पाता था ..
आशाओ का दामन थाम थोडा बहुत लिख पाता था ...
महसूस किया जो खुद ने, बताना अच्छा लगता था ...
लिखना मेरा शौक नहीं जीवन का हिस्सा था ..
खुद को बयां करने की हसरत कम होने लगी थी ..
शायद इसलिए कलम थमी थी ..
ऊपर से यारो से दूरी जीने का ढंग बदल देती है ..
जिंदगी चुपके से ऐसे इम्तिहान लेती है
पर इन इम्तिहानो का फल जब मिलता है ..
ये दिल उन्मुक्त पंछी सा आसमां में उड़ता है ...
हर गिरता लम्हा फिर मैं थामने लगता हूँ ..
फिर से बांधकर शब्दों में उसको बाटने लगता हूँ. .
आज भी कुछ ऐसी हरकत कर गया हूँ . . .
आदत से मजबूर देर से ही सही कुछ लिख गया हूँ . . . .
इन्तजार हमेशा रहता है उस एहसास का जो दिल में बंद था
शायद इसलिए लिखना मेरा कम था
शायद इसलिए लिखना मेरा कम था
खुला है शायद रास्ता कुछ आज ...
बिखरे है अल्फाज बिन साज
अमित कभी "आवर्त" तो कभी खुश दोस्तों के साथ कुछ न कुछ कहता रहेगा....
ये लिखना, लिखना नहीं जीवन है मेरा रुक-चल-रुक चलता रहेगा....................
ये लिखना, लिखना नहीं जीवन है मेरा रुक-चल-रुक चलता रहेगा....................
कुछ न लिख कर भी बहुत कुछ लिख दिया आपने.....
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