नए साल से पहले कुछ यादो की सौगात लेकर आया हूँ कुछ पंक्तिया इधर उधर से उठाकर अपनी ही कुछ बाते बता रही है उन्ही पंक्तियो को सबके साथ बाटने की कोशिश है क्यूंकि मुझे ये बहुत पसंद आई है सारी पंक्तिया मित्रो द्वारा ही लिखी गयी है मित्रो के लिए........नए वर्ष के स्वागत एवं बीते हुए हसीं पलो के सम्मान में ....................
तो सीधे ............
११:२१
२९/१२/२०११
अक्सर हम लम्हों को ख़ास बनाने की चाह मे, लम्हों की अहमियत हे खो देते है...
और उन बीते लम्हों की कीमत का एहसास हमे तब होता है जब, हम यादो के झरोखे से मुड़कर देखते है ..........................
कुछ ख़ास होगा वो पल, कुछ ख़ास होगा आने वाला कल ...
इसी चाह मे आज भी वक़्त गुजर गया...
अब जब मुड़कर देखता हूँ कल को, तो होता है एहसास यह की ....
ख़ास तो हर लम्हा था ... हर इक पल था ...
वो धूप ख़ास थी ... वो छाँव ख़ास थी ...
वो बदली ख़ास थी ... वो बारिश ख़ास थी ...
वो फूल ख़ास थे ... वो कांटे ख़ास थे ...
वो बसंत खास था ... वो पतझड़ ख़ास थी ...
वो नदी ख़ास थी ... वो किनारा ख़ास था ...
वो रास्ता ख़ास था ... वो मंजिल ख़ास थी ...
वो यारो की हंसी ख़ास थी ... वो यारो की कमी ख़ास थी ...
वो आँखों मे चमक ख़ास थी ... वो आँखों की नमी ख़ास थी ...
वो कालेज के लिए निकलना ख़ास था ... वो कालेज से निकलना ख़ास था ...
वो कैंटीन का खाना ख़ास था ... भले ही वो बड़ा बकवास था ...
वो मिल के सुल्गानी इक दूसरे की ...और फिर उसपर हवा लगाना ख़ास था ...
वो रोना किसी का ख़ास था ... वो मनाना किसी का ख़ास था ..
वो किसी पर आया "crush" ख़ास था ... वो किसी का "crush" होना ख़ास था ...
वो किसी को चाहना ख़ास था ... किसी की चाहत होना ख़ास था ....
वो सपनो को देखना ख़ास था ... वो उनमे खो जाना ख़ास था ...
वो दिल को सताना ख़ास था ... वो दिल को मनाना ख़ास था ...
कैसा भी था कोई भी पल ... उसमे अपना कुछ ख़ास था ...
लिखते वक़्त इन पंक्तियों को ... इन लम्हों का एहसास ख़ास था ....
न मैं ख़ास था ... न तू ख़ास था ...
पर न जाने क्या-क्या ख़ास था ....
न वो वक़्त ख़ास था ... न वो आलम ख़ास था ...
बस्स्स ... गुजरे हुए इन लम्हों मे मौजूद "इक एहसास " था ....
और शायद.... वही "ख़ास" था .... वही "ख़ास" था .........................अखिलेश की कलम से
१२ :४७ अपराहन
३०/१२/२०११
"पल" पल के "किस्से" उन पलो में बन गए ....
थोड़ी "बातें" जिनके अब "किस्से" बन गए ...
जाने कहा कब ये "सफ़र" शुरू हुआ ...
"अजनबी" एक शहर में ख़ास एक "एहसास" हुआ ..
भवर में जिसकी न जाने क्या-क्या "ख़ास" हुआ.
मुड़कर देखा तो "यादों" की सुनहरी धूप बन गयी ..
जिसमे "खेलते" थे कल तक आज एक "याद" बन गयी ...
"ख़ुशी" की वो अनमोल कीमत..
"आंसुओ" का भी जो मोल नहीं...
कहने को "दो पल" का वो साथ ..
न जाने कब उनमे "ज़िन्दगी" बन गयी.......मेघा के मन से
१२:५१ अपराहन
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११:२१
२९/१२/२०११
अक्सर हम लम्हों को ख़ास बनाने की चाह मे, लम्हों की अहमियत हे खो देते है...
और उन बीते लम्हों की कीमत का एहसास हमे तब होता है जब, हम यादो के झरोखे से मुड़कर देखते है ..........................
कुछ ख़ास होगा वो पल, कुछ ख़ास होगा आने वाला कल ...
इसी चाह मे आज भी वक़्त गुजर गया...
अब जब मुड़कर देखता हूँ कल को, तो होता है एहसास यह की ....
ख़ास तो हर लम्हा था ... हर इक पल था ...
वो धूप ख़ास थी ... वो छाँव ख़ास थी ...
वो बदली ख़ास थी ... वो बारिश ख़ास थी ...
वो फूल ख़ास थे ... वो कांटे ख़ास थे ...
वो बसंत खास था ... वो पतझड़ ख़ास थी ...
वो नदी ख़ास थी ... वो किनारा ख़ास था ...
वो रास्ता ख़ास था ... वो मंजिल ख़ास थी ...
वो यारो की हंसी ख़ास थी ... वो यारो की कमी ख़ास थी ...
वो आँखों मे चमक ख़ास थी ... वो आँखों की नमी ख़ास थी ...
वो कालेज के लिए निकलना ख़ास था ... वो कालेज से निकलना ख़ास था ...
वो कैंटीन का खाना ख़ास था ... भले ही वो बड़ा बकवास था ...
वो मिल के सुल्गानी इक दूसरे की ...और फिर उसपर हवा लगाना ख़ास था ...
वो रोना किसी का ख़ास था ... वो मनाना किसी का ख़ास था ..
वो किसी पर आया "crush" ख़ास था ... वो किसी का "crush" होना ख़ास था ...
वो किसी को चाहना ख़ास था ... किसी की चाहत होना ख़ास था ....
वो सपनो को देखना ख़ास था ... वो उनमे खो जाना ख़ास था ...
वो दिल को सताना ख़ास था ... वो दिल को मनाना ख़ास था ...
कैसा भी था कोई भी पल ... उसमे अपना कुछ ख़ास था ...
लिखते वक़्त इन पंक्तियों को ... इन लम्हों का एहसास ख़ास था ....
न मैं ख़ास था ... न तू ख़ास था ...
पर न जाने क्या-क्या ख़ास था ....
न वो वक़्त ख़ास था ... न वो आलम ख़ास था ...
बस्स्स ... गुजरे हुए इन लम्हों मे मौजूद "इक एहसास " था ....
और शायद.... वही "ख़ास" था .... वही "ख़ास" था .........................अखिलेश की कलम से
१२ :४७ अपराहन
३०/१२/२०११
"पल" पल के "किस्से" उन पलो में बन गए ....
थोड़ी "बातें" जिनके अब "किस्से" बन गए ...
जाने कहा कब ये "सफ़र" शुरू हुआ ...
"अजनबी" एक शहर में ख़ास एक "एहसास" हुआ ..
भवर में जिसकी न जाने क्या-क्या "ख़ास" हुआ.
मुड़कर देखा तो "यादों" की सुनहरी धूप बन गयी ..
जिसमे "खेलते" थे कल तक आज एक "याद" बन गयी ...
"ख़ुशी" की वो अनमोल कीमत..
"आंसुओ" का भी जो मोल नहीं...
कहने को "दो पल" का वो साथ ..
न जाने कब उनमे "ज़िन्दगी" बन गयी.......मेघा के मन से
१२:५१ अपराहन
३०/१२/२०११
कुछ ख़ास रहा ... कुछ बकवास रहा
कभी पराया सा तो कभी अपनेपन का एहसास रहा ...
ख़ुशी से बिछुड़ा यहीं ....यहीं उसके पास रहा .....
जा रहा है देखो वो छोड़कर
जिसका खूबसूरत इतिहास रहा .......
हर चिक-चिक ज्हिक-ज्हिक में जिसके जीने का प्रयास रहा .....
बीते लम्हों की ओट में कुछ हास रहा परिहास रहा ....
ये जो पल बीता ..."कल"....
कुछ ख़ास रहा ... कुछ बकवास रहा......
सबको नया वर्ष मुबारक हो ......आशा और उम्मीद के साथ की आप सबका हर पल ख़ास हो ..............
कुछ ख़ास रहा ... कुछ बकवास रहा
कभी पराया सा तो कभी अपनेपन का एहसास रहा ...
ख़ुशी से बिछुड़ा यहीं ....यहीं उसके पास रहा .....
जा रहा है देखो वो छोड़कर
जिसका खूबसूरत इतिहास रहा .......
हर चिक-चिक ज्हिक-ज्हिक में जिसके जीने का प्रयास रहा .....
बीते लम्हों की ओट में कुछ हास रहा परिहास रहा ....
ये जो पल बीता ..."कल"....
कुछ ख़ास रहा ... कुछ बकवास रहा......
सबको नया वर्ष मुबारक हो ......आशा और उम्मीद के साथ की आप सबका हर पल ख़ास हो ..............
ये अंदाज़ भी खास है..... सुन्दर अभिव्यक्ति.........नववर्ष की शुभकामनायें.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिवयक्ति....नववर्ष की शुभकामनायें.....
जवाब देंहटाएंAapko bhi hardik subhkaamna..:)
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