कैसा होता...
वो अजनबियो की तरह हमेसा बातें चलती
कैसा होता
कभी भी न हमे किसी अपने की कमी खलती
कैसा होता
रोज मिलते बनके अपरिचित
कैसा होता
न करती किसी की भावना हमे विचलित
कैसा होता हर किसी से दोस्ती निभाना
कैसा होता
बिन पाए ही किसी को गवाना
कैसा होता
रोज की एक नयी याद
कैसा होता
कल को हम भूल जाते आज
कैसा होता
जब मानकर नई, सुनते हम एक ही साज
कैसा होता वो एक दिन जिंदगी रोज जीना
कैसा होता
छोटी सी ख़ुशी और थोडा दुःख का घूट पीना
कैसा होता
कल आज और कल
कैसा होता
जब बनता नया हर एक पल
कैसा होता
वो सिर्फ एक दिन का संसार
कैसा होता
वो एक दिन की नफरत और एक दिन का प्यार
कैसा होता
हर रोज एक नया दोस्त बनाना
कैसा होता
हर नए रिश्ते को सदियो से जानता मानकर निभाना
कैसा होता
मेरा ऐसे ही कुछ पंक्तिया लिख कर भूल जाना
कैसा होता
फिर इन्ही पंक्तियो को दुबारा से लिखकर गुनगुनाना ……………….
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