मुस्कान को मुरझाते देखा
पहचान को सिमटते देखा
बातें बनाता गया में
जीवन को सकुचाते देखा
सही और गलत के फैसले में
अपनों को दूर होते देखा
जीवन भर सच की तलाश में
सबको मिथ्यादोष दे कर देखा
परिस्थितिया सिखाती रही कभी भी कुछ न सीखा
ख़ुशी के लिए ख़ुशी को भी रुला के देखा...
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