अँधेरी रात में ,
चमकती बिजली और बरसात में
महसूस करता मै अपने रोम छिद्रों मे नमी को
एक चाते और फ़ोन के सहारे घर की ओर
Full on मौसम नो बोर
अंधड़ और मेरी जदोजहद मे छाता उड़ता कभी सम्हालता
खुसबू गीली मिटटी की सूंघता
अँधेरे मे न जाने कदम कहा कहा टिकता
चला जा रहा घर की राह पे
अपने आप से हे हांकते गप्पे
जिनमे खलल पड़ता पत्तो के शोर और बदल के गर्जन का
भीग चुका मे आधा पूरा
अचानक उपरवाला flash मार के रास्ता दिखाता
काश इस छाते और फ़ोन के अलावा भी कोई मेरे साथ होता
छाता उड़ा,मुड़ा मैंने उसे बंद किया
संकल्प बारिश मे हवा को झेलते हुए घर जाने का लिया …
और चलते चलते ये पंक्तिया लिखते …
जाने मे कहा खो गया
वक़्त और मौसम बहुत जल्दी बीत गया ..
Finally in home भीगते भागते ठण्ड से कपकपाते ..
………………..22/0ct/2010………..sham ko 6:30 se 7:00 pm k बीच ..
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