मेरी तन्हाई मुझे भाती थी
बातें चलती थी
और वो सिर्फ सुनती जाती थी
एक दिन फिर तुम आई
खिलखिला के टूटी तन्हाई
धीरे से साथ छोड़ा उसने
अकेले में साथ दिया था जिसने
अब तुम थी
और बातें चलती मैं सुनता जाता था
पल बीते कुछ और मेरी आदत जाती रही बोलने की
पर इस पल छूटा तेरा साथ इस कदर
तब टूटा मेरा सब्र . .जाने के बाद तेरे
अब न है कोई दरम्या तन्हाई और मेरे
अब दोनों एक दूजे को सुनने की कोशिश करते है . . . .:):)
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंतन्हाई पर लिखी बहुत सुंदर और अनोखी रचना बहुत बहुत बधाई आपको
जवाब देंहटाएंplease visit my blog
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बढ़िया प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसादर...
सभी का तहे दिल से शुक्रिया मेरी कविता आप जैसे बड़े कद के कलाकारों की टिप्पणी पाकर धन्य हो गयी ..:):)
जवाब देंहटाएंbhaut hi acchi rachna....
जवाब देंहटाएंsukria sagar ji
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत से तन्हाई को अपने शब्दों द्वारा बयाँ किया है....
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