मैंने कभी सपने नहीं देखे
क्यूंकि मुझे उनके टूटने का डर था
न ही बनाये रिश्ते अपने नए
क्यूंकि अपनों के छूटने का डर था
न ही दौड़ा मज़िल की ओर
भाग कर गिर जाने का डर था
न की कभी कोशिश से भी कोशिश
नाकामयाबी का डर था
जिंदगी जी सिर्फ यु ही
खुलकर जीने में मुझे बदनामी का डर था .
पैदल ही मेरा सफ़र था .
फिर आये तुम
दौड़ा दिया ,
दिखाए सपने .
चौंका दिया ,
बनाने लगा में रिश्ते ,
कोशिश किया उठकर जीने लगा.
नाकामयाबी और बदनामी को नकार दिया .
सपने टूटे फिर भी
उनके होने का मुझे जश्न था ,
रिश्ते भी छूटे पर
उनकी मीठी यादो का जश्न था ,
गिरा मैं चलकर भी
दौड़ने में थक कर चूर हो जाने का जश्न था,
कोशिशे की लगातार हजार कुछ हुई कामयाब
पर मुझे उनके होने का जश्न था,
जिंदगी जी ख़ुशी से गुमनामी का डर नहीं
मुझे जीने का जश्न था
पैदल है अभी भी सफ़र मेरा
पर तुम जैसा दोस्त बनाने का जश्न था जश्न है जश्न रहेगा.
KHUSH!DOST!AM!T :)
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