अंत में मैं अकेला था उस काली सड़क पर ,
एक साया था मेरे साथ ,मेरा ही था वो शायद,
पर वो भी खो गया ,
ज्यो ज्यो रात काली बढती गयी
अब तो सिर्फ यादें , बातें , वादें ही थे
जिनके सहारे बढ रहा था मैं उस घनघोर रात में ,
सन्नाटे का शोर गूंज रहा था,
चीत्कार मेरे मन की,
दूर दूर तक कोई नहीं सुन रहा था ,
तभी ख्याल आया और पथिको का ,
कहा है वो सब जो चले थे मेरे साथ
और जिनके कदम उठे थे मेरे बाद
साथ लेकर चलना चाहता था मैं उनको,
पर कुछ ज्यादा तेज निकले ,
तो किसी ने इनकार किया बढने से
फिर भी कुछ तो थे जो बढे जा रहे थे मेरे साथ
बिना किसी संशय, एक उम्मीद पे
की मंजिल हम सबकी एक ही है ,
पर उस काली सड़क पर कुछ चोराहे भी थे
हर बार में अपने दल को एक चौथाई पाता
मेरे कदम कह रहे थे उनसे भी अब चला नहीं जाता
अब फिर मै अकेला था उस काली सड़क पर
अपने साये से भी जुदा होकर चल रहा था ,
में इसी सोच मै डूबा चल रहा था
की कुछ दिखे अपने मुझे जो निकले थे आगे
कहने लगे के मेरे लिए बढे थे वो आगे मुझे छोडकर
ताकि बाद मे उस काली सड़क पर मुझे न हो परेशानी
फिर मैंने जो रह गए थे पीछे उनका इन्तजार करने की ठानी
मंजिल करीब आ रही थी फिर से हम साथ थे
भूल गए थे किसने क्यों छोड़ा किसी को
क्यों नहीं पूछा एक क्षण हमको
हम वापिस सब साथ थे
मना रहे थे खुशी मंजिल को पाने की
अब वो रात भी जा चुकी थी
सूरज अंगड़ाई ले रहा था
मेरा साया भी अब मेरे साथ था
कहते हुए की रात मे भी
मैं था वही, पर मैं दख न पाया उसे
सोच बदली नयी सुबह के साथ मेरी
मैंने छोड़ दी थी चिंता अब उस काली सड़क पे अकेले चलने की
विस्वास था मेरे मन मे अब
कभी भी कही भी किसी भी सड़क पर मैं अकेला नहीं
हैं वो यादें बातें वादे मेरे अपनों के
जो हर पल देंगे साथ मेरा
चल पड़ा हु फिर मैं अब किसी डगर पर
लेकिन इस बार सड़क का रंग मायने नहीं रखता मेरे लिए __________
Apar!m!t_________mann_________khushi__aseem_____
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