कभी शाम से सुनहरे
तो कभी बरसात के काले बादल से गहरे
कभी तन्हाई का स्याह कालापन
तो कभी उजली चटख मुस्कान
धोखे का मटमैला
तो कभी विश्वास का रंग फैला
विचित्र है ये रंगों के किस्से भी
कभी श्वेत-श्याम है नेतृत्व में सुख-दुःख के
तो कभी भेद नहीं इन्द्रधनुसी सप्तरंगो में
कुछ अजनबी है अनजान रंग बिखेर जाते है
कुछ अपने जो कुछ अनचाहे रंगों को मिटाते है
कितनी रंगीन सी है ये ज़िन्दगी
और रंगों के विवरण से भरी
कभी नीला स्वछंद आकाश तो कभी सूखी दूब हरी ...
कुछ रंग मैंने भी उड़ेले होंगे
चाहकर कुछ तो कुछ गलती से
जो मिला जहाँ रंगता गया अपने रंग में
अजीबो -गरीब रंग बिखेरे है लोगो ने मेरी ज़िन्दगी में
इन्ही रंगों की एक "अकल्पनीय" रचना है ज़िन्दगी
रंग जाओ खुद और रंगों दूसरो को भी
अंत में तो एक रंग हो जाना है सभी ........
अजीबो-गरीब रंग बिखेरे है लोगो ने मेरी ज़िन्दगी में ..
अजीबो-गरीब रंग बिखेरे है मैंने भी लोगो की ज़िन्दगी में
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