सरू जल उफान पर,
आभास है प्रलय का ये,
या हो रहा सृजन !
बिजलिया है कौंधती,
व्योम घन फट रहे
मूसलाधार बरिशे ,
मूसलाधार बरिशे ,
असमय ऋतु आगमन
आभास है प्रलय का ये
या हो रहा सृजन!!हिमखंड हिमाल के,
पिघल रहे रवि-क्रोध से
सुप्त ज्वालामुखी वर्षो के,
उबलने को है प्रतिशोध से
आभास है प्रलय का ये
या हो रहा सृजन!!!वृक्ष निरीह कटान पर
अपने अपरिपक्व ज्ञान पर,
मनुष्य चला प्रकृति विजय को,
कुचल कर सृष्टी नियम
आभास है प्रलय का ये
या हो रहा सृजन!!!!भू-क्षरण धरा का है,
चरित्र-क्षरण मनुष्य का हो रहा
सत्ता के द्वंद में,
मनु-चरित्र खो रहा
भ्रष्ट नीति से राज में,
हो रहा वो पशु मन
आभास है प्रलय का ये
या हो रहा सृजन!!!!!.....................................क्रमश:.........................................
Satat prayaas ---->>> "safalta ki kunji hai"
जवाब देंहटाएंBehtareen...bhai.. Bus.. Kp going... :)
Jrur mitrA.......:)
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