हर दिशा से हवाए चली थी
कुछ दूर चल कर वो सब मिली थी
बनाया बसेरा एक नदी के किनारे
झूमती गाती मुस्कुरा के गुनगुनाती
सन सन बहकर राग ख़ुशी के सुनाती
हवाए चली थी
हवाए चली थी ..
कही पर मिली थी
बिछड़ने वाली है
मंजिले चुनके अपनी उड़ने वाली है
जो हवाए चली थी
कभी जो मिली थी ...क्रमश:
........:)
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