साथ सूखे वृक्षों की कतार
वक़्त बीता बरसो का . . . .
न आई उन मे बहार . . . .
रोज सुबह करते ओस की बूँद का इंतज़ार . . .
पर न फूटी अब एक भी कोपल जिसमे बसा हो प्यार . . .
रोज सुबह भीग कर तरबतर ओस में . . .
सपने सोचते . . .
आंसू मिले ओस में पोछते . . . .
यु ही बरसो और बीत गये . . .
मौसम न जाने कितने निकले . . .
बसंत उनका कभी न आया . . . .
बसा रहा उनके तनों में काला साया . . . .
वो महसूस करते हर धूप . . .
पर करने छाव उनकी डाली पर . . .
एक भी पत्ता न आया . . . .
आज मेरी नजर पड़ी उनपर . . .
मैंने अपने और उनमे कुछ जादा अंतर न पाया . . .
पर देखते ही मेरे एक चमत्कार हुआ . . . .
अगली सुबह निकली कोपल नयी . . .
मुझे भी आश्चर्य हुआ . . . . . . .
पर पता चला वो चमत्कार था . . .
उस एक पेड़ के गिरने का फल . . . .
हरे भरे होने लगे वो जो सूखे थे कल . . . . .
क्यूंकि उनका दोस्त गिरा उनके लिए . . .
उनकी जड़ो में दे गया प्रेम की उर्वरा शक्ति . . . . .
अब पंछी चहेकते और छाव लगती.
दोस्ती और प्रेम की शक्ति.................
KHUSH!DOST!AM!T.....:)
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