शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

रिश्तो में फिर वही मिठास पुरानी ढूंढ़ता हूँ
बातो में फिर से प्यारी छोटी कहानी ढूंढ़ता हूँ
बिखरते हुए इन पलो में जुड़ने की आस ढूंढ़ता हूँ
हो चुके सब मतलबी शायद, भाव निस्वार्थ ढूंढ़ता हूँ
समझदारी की इस दलदल में मासूमियत का कवल ढूंढ़ता हूँ
कहता था पहले
" ढूंढ़ तो हर जगह मिलती है जिंदगी ...."
अब सिर्फ उसकी तलाश ढूंढ़ता हूँ

मंजिल जिसे पास समझा था, उसे पाने की प्यास ढूंढ़ता हूँ
पहले हँसता था अकारण
अब हर हँसी का जवाब ढूंढ़ता हूँ
आधी अधूरी जितनी भी पढ़ी
जिंदगी की खोयी किताब ढूंढ़ता हूँ
खुश, ख़ुशी से परे सही मायने में
जिंदगी की किताब ढूंढ़ता हूँ
:)
:)

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KHOJ

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