7:45 AM
तो उसे देखकर मुझे थोडी सी कल की बातें याद आई "वैलेंटाइन्स दिवस" कि बात है,वो फूल अपूर्व ने मुझे बस की सीट के नीचे से उठाकर दिया था,ये कहते हुए की "ये कोई तरीका है तुम फूल तोड़ के कहीं भी फ़ेंक दो जब किसी ने कुछ दिया है तो कद्र करो"
फिर वो फूल मैंने रख लिया था ।
फिर उसके बाद मैं वापिस अपने ख्यालो में खोया हुआ विक्रम में था।
उस फूल को देख रहा था और मेरे हाथ मेरे फ़ोन पर चल रहे थे।
एक फूल पड़ा हुआ था मेरे बैग की जेब में
मुरझाया,अशक्त,ग़मगीन
देख कर उसको मैंने पूछ लिया
तुम्हारी भी क्या ज़िन्दगी है
कितने हाथो से गुजरकर आखिर खो जाओगे
जीना सिर्फ दो क्षण का तुम्हारा
अब कहा पाओगे
अचानक एक आवाज़
खिली हुई,जानदार,उत्साहित गूंज उठी
मेरे अन्तर्मन में
“मुझे मुरझाना पसंद है
मुझे टूट जाना पसंद है
मुझे सबके दिल को भाना पसंद है”
मैं चौंका, देखा इधर-उधर
ये आवाज़ किधर से आई है
वो गुलाब जो मुरझाया था बोला
इधर देखो भाई मैंने आवाज़ लगाई है
तुम कौन सा जीकर भी पूरी अपनी जिंदगी
किसी को सुख दे पाते हो
हमेशा ही तो जो चाहते है तुम्हें
उन्हें ही दुखाते हो
पर मुझे जो चाहता है
रहता है हमेशा प्रसन्न
क्या हुआ जो जिंदगी है मेरी केवल दो क्षण
ये दो क्षण ही मेरे है सार्थक,करते तृप्त मन
जिसने सीचा
जिसने थोड़ा
जिसने सजाया
जिसने बिखेरा
जिसने कुचला
सभी ही तो मेरी दो पल की
कहानी के गवाह है।
ना वो हैं दुखी मेरे कारण
वरना जीना मेरा निरर्थक है
उसके सूखे लबो से इतनी कोमल
ध्वनि में इतनी बड़ी सीख की अपेक्षा न थी
पर वो यही नहीं थमा
मेरे प्रश्न को वो गंभीरता से ले बैठा
पूछा था जो प्रश्न मैंने उसे
वो मुझसे ही पूछ बैठा
मैं निरुत्तर था फिर भी हार नहीं मानी
सुना दी उसको अपनी स्वार्थी कहानी
की हम तो ख़ुशी के हकदार बनते है
पर तुम तो निस्वार्थ बुनते हो ख़ुशी के पल
ना है तुम्हें चिंता क्या होगा कल
हर कोई तुझे उठाता-पटकता खुश होता है
और तू हमारी ख़ुशी में खुद को खोता है
मेरी पुरानी आदत
जो न देती है जरा भी माहौल समझने की इज़ाज़त
मै बोलता जा रहा था
राज दिल के खोलता जा रहा था
देखा एक पल उस गुलाब को
वो सन्नाटे में कही खो चुका था
खुशबू विलीन वातावरण में मृत वो हो चुका था
अब भी उसकी पंखुडिया मुझे उसकी यात्रा की याद दिला रही थी
मेरे अपनों के बीच उसके विचरण की लघुकथा सुना रही थी
मेरा अंतिम सलाम था उसके सुर्ख शारीर को सहेजना
उसको तो हमेशा ख़ुशी ही बाँटनी थी
निष्प्राण होकर भी कर रहा अपने जीवन को सार्थक वो
ख़ुशी बाँटते,महसूस करते सो चुका था जो …
8:15 AM
विक्रम से उतरा थोड़ी देर खड़ा रहा मेरी कॉलेज बस आ गयी थी में उसमे चढ़ा और आम दिनों की तरह कॉलेज की ओर निकल पड़ा ………..
विक्रम* : देहरादून की स्थानीय सवारी और जगहों पर इसे टमटम या जुगाड़ नाम से भी जाना जाता है।
आज सुबह जब विक्रम* में चढ़ा तो देखा बैग कि सबसे आगे की जालीदार जेब में एक गुलाब का मुरझाया फूल पड़ा हुआ था!
तो उसे देखकर मुझे थोडी सी कल की बातें याद आई "वैलेंटाइन्स दिवस" कि बात है,वो फूल अपूर्व ने मुझे बस की सीट के नीचे से उठाकर दिया था,ये कहते हुए की "ये कोई तरीका है तुम फूल तोड़ के कहीं भी फ़ेंक दो जब किसी ने कुछ दिया है तो कद्र करो"
फिर वो फूल मैंने रख लिया था ।
फिर उसके बाद मैं वापिस अपने ख्यालो में खोया हुआ विक्रम में था।
उस फूल को देख रहा था और मेरे हाथ मेरे फ़ोन पर चल रहे थे।
एक फूल पड़ा हुआ था मेरे बैग की जेब में
मुरझाया,अशक्त,ग़मगीन
देख कर उसको मैंने पूछ लिया
तुम्हारी भी क्या ज़िन्दगी है
कितने हाथो से गुजरकर आखिर खो जाओगे
जीना सिर्फ दो क्षण का तुम्हारा
अब कहा पाओगे
अचानक एक आवाज़
खिली हुई,जानदार,उत्साहित गूंज उठी
मेरे अन्तर्मन में
“मुझे मुरझाना पसंद है
मुझे टूट जाना पसंद है
मुझे सबके दिल को भाना पसंद है”
मैं चौंका, देखा इधर-उधर
ये आवाज़ किधर से आई है
वो गुलाब जो मुरझाया था बोला
इधर देखो भाई मैंने आवाज़ लगाई है
तुम कौन सा जीकर भी पूरी अपनी जिंदगी
किसी को सुख दे पाते हो
हमेशा ही तो जो चाहते है तुम्हें
उन्हें ही दुखाते हो
पर मुझे जो चाहता है
रहता है हमेशा प्रसन्न
क्या हुआ जो जिंदगी है मेरी केवल दो क्षण
ये दो क्षण ही मेरे है सार्थक,करते तृप्त मन
जिसने सीचा
जिसने थोड़ा
जिसने सजाया
जिसने बिखेरा
जिसने कुचला
सभी ही तो मेरी दो पल की
कहानी के गवाह है।
ना वो हैं दुखी मेरे कारण
वरना जीना मेरा निरर्थक है
उसके सूखे लबो से इतनी कोमल
ध्वनि में इतनी बड़ी सीख की अपेक्षा न थी
पर वो यही नहीं थमा
मेरे प्रश्न को वो गंभीरता से ले बैठा
पूछा था जो प्रश्न मैंने उसे
वो मुझसे ही पूछ बैठा
मैं निरुत्तर था फिर भी हार नहीं मानी
सुना दी उसको अपनी स्वार्थी कहानी
की हम तो ख़ुशी के हकदार बनते है
पर तुम तो निस्वार्थ बुनते हो ख़ुशी के पल
ना है तुम्हें चिंता क्या होगा कल
हर कोई तुझे उठाता-पटकता खुश होता है
और तू हमारी ख़ुशी में खुद को खोता है
मेरी पुरानी आदत
जो न देती है जरा भी माहौल समझने की इज़ाज़त
मै बोलता जा रहा था
राज दिल के खोलता जा रहा था
देखा एक पल उस गुलाब को
वो सन्नाटे में कही खो चुका था
खुशबू विलीन वातावरण में मृत वो हो चुका था
अब भी उसकी पंखुडिया मुझे उसकी यात्रा की याद दिला रही थी
मेरे अपनों के बीच उसके विचरण की लघुकथा सुना रही थी
मेरा अंतिम सलाम था उसके सुर्ख शारीर को सहेजना
उसको तो हमेशा ख़ुशी ही बाँटनी थी
निष्प्राण होकर भी कर रहा अपने जीवन को सार्थक वो
ख़ुशी बाँटते,महसूस करते सो चुका था जो …
8:15 AM
विक्रम से उतरा थोड़ी देर खड़ा रहा मेरी कॉलेज बस आ गयी थी में उसमे चढ़ा और आम दिनों की तरह कॉलेज की ओर निकल पड़ा ………..
विक्रम* : देहरादून की स्थानीय सवारी और जगहों पर इसे टमटम या जुगाड़ नाम से भी जाना जाता है।
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