बुधवार, 27 अप्रैल 2011

तन्हाई और तू



मेरी तन्हाई मुझे भाती थी

बातें चलती थी

और वो सिर्फ सुनती जाती थी

एक दिन फिर तुम आई

खिलखिला के टूटी तन्हाई

धीरे से साथ छोड़ा उसने

अकेले में साथ दिया था जिसने

अब तुम थी

और बातें चलती मैं सुनता जाता था

पल बीते कुछ और मेरी आदत जाती रही बोलने की

पर इस पल छूटा तेरा साथ इस कदर

तब टूटा मेरा सब्र . .जाने के बाद तेरे

अब न है कोई दरम्या तन्हाई और मेरे

अब दोनों एक दूजे को सुनने की कोशिश करते है . . . .:):)

7 टिप्‍पणियां:

  1. तन्हाई पर लिखी बहुत सुंदर और अनोखी रचना बहुत बहुत बधाई आपको




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    जवाब देंहटाएं
  2. सभी का तहे दिल से शुक्रिया मेरी कविता आप जैसे बड़े कद के कलाकारों की टिप्पणी पाकर धन्य हो गयी ..:):)

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही खुबसूरत से तन्हाई को अपने शब्दों द्वारा बयाँ किया है....

    जवाब देंहटाएं

KHOJ

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